आपणी भासा म आप’रो सुवागत

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मंगलवार, 27 नवंबर 2007

निःशब्द हो जलता रहा


आज, अपने आपको खोजता रहा,
अपने आप में,मीलों भटक चुका था,
चारों तरफ घनघोर अंधेरासन्नाटे के बीच एक अजीब सी,
तड़फन ,जो आस-पास,
भटक सी गयी थी।शून्य ! शून्य ! और शून्य !
सिर्फ एक प्राण,जो निःसंकोच, निःस्वार्थ रहता था,
हर पल साथपर मैंने कभी उसकी परवाह न की,
अचानक उसकी जरूरत ने,
सबको चौंका दिया।चौंका दिया था मुझको भी,पर!
अब वहबहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर...
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज -
शम्भु चौधरी

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