राजस्थानी भाषा मान्यता के प्रश्न पर राजस्थान के भीतर पनप रहे विवाद के तह में वहाँ की प्रमुख समस्या राजस्थान की कई बोलियाँ है, जो चाहती है कि राजस्थानी भाषा के रूप में उनके स्वरूप को स्वीकार किया जाय यहाँ पर हम उन बोलियों पर चर्चा करेंगें -
राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ - प्रेम कुमार
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषएँ जन सामान्य पर ज्यादा प्रभाव डालती हैं। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग एवं सम्बन्धों के विषय में लिखा तथा वर्गीकरण किया है।
ग्रियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार है :-
- १. पश्चिमी राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियाँ - मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी, बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि।
- २. उत्तर-पूर्वी राजस्थानीबोलियाँ - अहीरवाटी और मेवाती।
- ३. मध्य-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - ढूँढाड़ी, तोरावाटी, जैपुरी, काटेड़ा, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़, नागर चोल, हड़ौती।
- ४. दक्षिण-पूर्वी राजस्थान - रांगड़ी और सोंधवाड़ी
- ५. दक्षिण राजस्थानी बोलियाँ - निमाड़ी आदि।
मोतीलाल मेनारिया के मतानुसार राजस्थान की निम्नलिखित बोलियाँ हैं :-
१. मारवाड़ी २. मेवाड़ी ३. बाँगड़ी ४. ढूँढाड़ी ५. हाड़ौती ६. मेवाती ७. ब्रज ८. मालवी ९. रांगड़ी
बोलियाँ जहाँ बोली जाती हैं :-
- १. मारवाड़ी - जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर व शेखावटी
- २. मेवाड़ी - उदयपुर, भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़
- ३. बाँगड़ी - डूंगरपूर, बाँसवाड़ा, दक्षिण-पश्चिम उदयपुर
- ४. ढूँढाड़ी - जयपुर
- ५. हाड़ौती - कोटा, बूँदी, शाहपुर तथा उदयपुर
- ६. मेवाती - अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली (पूर्वी भाग)
- ७. ब्रज - भरतपुर, दिल्ली व उत्तरप्रदेश की सीमा प्रदेश
- ८. मालवी - झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़
- ९. रांगड़ी - मारवाड़ी व मालवी का सम्मिश्रण
मारवाड़ी : राजस्थान के पश्चिमी भाग में मुख्य रुप से मारवाड़ी बोली सर्वाधिक प्रयुक्त की जाती है। यह जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और शेखावटी में बोली जाती है। यह शुद्ध रुप से जोधपुर क्षेत्र की बोली है। बाड़मेर, पाली, नागौर और जालौर जिलों में इस बोली का व्यापक प्रभाव है।
मारवाड़ी बोली की कई उप-बोलियाँ भी हैं जिनमें ठटकी, थाली, बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, सिरोही, गौड़वाडी, नागौरी, देवड़ावाटी आदि प्रमुख हैं। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल कहते हैं। डिंगल साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न बोली है।
मेवाड़ी : यह बोली दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में मुख्य रुप से बोली जाती है। इस बोली में मारवाड़ी के अनेक शब्दों का प्रयोग होता है। केवल ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं।
बांगड़ी : यह बोली डूंगरपूर व बांसवाड़ा तथा दक्षिणी-पश्चिमी उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में बोली जाती हैं। गुजरात की सीमा के समीप के क्षेत्रों में गुजराती-बाँगड़ी बोली का अधिक प्रचलन है। इस बोली की भाषागत विशेषताओं में च, छ, का, स, का है का प्रभाव अधिक है और भूतकाल की सहायक क्रिया था के स्थान पर हतो का प्रयोग किया जाता है।
धड़ौती : इस बोली का प्रयोग झालावाड़, कोटा, बूँदी जिलों तथा उदयपुर के पूर्वी भाग में अधिक होता है।
मेवाती : यह बोली राजस्थान के पूर्वी जिलों मुख्यतः अलवर, भरतपुर, धौलपुर और सवाई माधोपुर की करौली तहसील के पूर्वी भागों में बोली जाती है। जिलों के अन्य शेष भागों में बृज भाषा और बांगड़ी का मिश्रित रुप प्रचलन में है। मेवाती में कर्मकारक में लू विभक्ति एवं भूतकाल में हा, हो, ही सहायक क्रिया का प्रयोग होता है।
बृज : उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर, धौलपुर और अलवर जिलों में यह बोली अधिक प्रचलित है।
मालवी : झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़ जिलों में मालवी बोली का प्रचलन है। यह भाग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के समीप है।
रांगड़ी : राजपूतों में प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से बनी यह बोली राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
ढूँढाती : राजस्थान के मध्य-पूर्व भाग में मुख्य रुप से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, टौंक के
समीपवर्ती क्षेत्रों में ढूँढ़ाड़ी भाषा बोली जाती है। इसका प्रमुख उप-बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी, तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागर, चौल आदि प्रमुख हैं। इस बोली में वर्तमान काल में छी, द्वौ, है आदि शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।
राजस्थानी भाषा की समस्या इसकी लिपि
वैसे तो देवनागरी लिपि का इस्तमाल इन दिनों राजस्थानी भाषा को लिखने के लिए प्रयोग में लिया जाने लगा है, फिर भी इसकी प्रचीन लिपी हमें श्री हनुमंत राजपुरोहित के प्रयासों से उपलब्ध हुई है जिसे हम यहाँ पर प्रस्तुत कर रहें हैं। राजस्थानी भाषा को संविधान की सूची में शामिल हो यह सब चाहते हैं पर इसकी समस्या राजस्थान की है न कि संसद की।
साभार: Anshuman Pandey University of Michigan, Ann Arbor, Michigan, U.S.A. e-mail: pandey@umich.edu |
jankareeparak, behatreen prayaas, sachha sahitya karma; jo aajkal nahin ke barabar ho raha.
जवाब देंहटाएंdhanyawaad.
Ranjit
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जवाब देंहटाएंghano choko
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