आपणी भासा म आप’रो सुवागत

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रविवार, 27 नवंबर 2011

आपणी भासा राजस्थानी - शम्भु चौधरी


म्हारी दो दिनां’री राजस्थानी यात्रा में
मिलगी म्हाणै एक कहानी,
कमरा में पड़ी-पड़ी सड़गी
आपणी भासा राजस्थानी।
समाचारपतरां म कोणी दिखी
दिवाळा में कोणी दिखी
बातां में भी खोती दिखी
नेता’रे फोटूआं म भी कोणी दिखी
टी.वी चैनला म भी खोगी
आपणी भासा राजस्थानी।

पर
एक छोटी सी कोठरी में
दम तौड़ती, खांसती
हिम्मतां हारती
फाटड़ा गाबां म
ईलाज रे अभाव म
अन्तिम सांसां लेती
दिखगी मणै
आपणी भासा राजस्थानी।

ताना कसी
थे अब आया हो?
अब कै लैणै आया हो?
म तो अब मरण’हाळी हूँ।
मणै आपरी छाती से चिपका’र
फैंरुं बोली-
देख आ मेरी वसीयत है
जिकी तेरे नाम कर दी है।
अब तो बस मेरी सांस बची है
जिकी मेरे सागै ही अब जासी।
लालसाजी अर सेठीया जी चळग्या,
रावतजी भी छोड़ चळग्या।
तेरे बस’रीं बात कोणी
अब कि’रीं मणै आस कोणी।
हाँ!
बा छिपा (बर्तन) में कुछ रोटी बचगी
भाया म सै बांट’रे खालै
ब्रज, हाड़ौती, बागड़ी, णै देदे आधी
ढूँढ़ाड़ी, मेवाड़ी, णै देदे म्हारी लोटी
(बचा-कुचा समान)
मारवाड़ी, मालवी, देदे आ खटिआ (मचान)
शेखावटी देदे सारी बकिया(कर्ज)
अन्तिम सांसां लेती बोळी
आपणी भासा राजस्थानी।

आंखां म आंसू झलकाया
सर पर मेरे हाथ फिराया
मणै पूछी
तेरा डाबर कंईयां है?
मेरी आस तो कोणी बची
औळ्यां सैं’री आवै है।
देख आ माटी पर
कुछ पड़ी किताबां
पाणी में भींगी जावै है।
किड़ा खाग्या,
ढीळ लाग्गी,
किनारे से पूरी फाटगी,
बाबूसा बोल्यां करता था
अन्तिम सांसां लेती बोळी
आपणी भासा राजस्थानी।

म तो अब चालन लागी हूँ
अंतिम सांसां गिण रही हूँ
सैं’णै मेरो राम-राम कहियो।
घणी डिक(इंतजार) लगाई सैं’रीं
काफी आस जगाई सैं’रीं
सैंका सैं नालायक निकला
लायक भी नालायक निकला
बोबा’रो दूध पिलायो सैंणै
मांचा म खुब खिलायो सैं’णै
बाबू’री फाट’री धोती
पोतड़ा में सुलांयो सैं’णै
आज मेरी साड़ी भी अब
गई सग्ळी फाट...
रुक’रे बोली...
सुण मेरी इक बात!
अन्तिम सांसां लेती बोळी
आपणी भासा राजस्थानी।

मेरे एक काम करोगो तू!
बी कोणा में जा
देख बठै है मेरी पोथी
‘मायड़ भासा राजस्थानी’
राख संभाल काम जद आसी
कोई काम न आसी।
अन्तिम सांसां लेती बोळी
आपणी भासा राजस्थानी।


(आपणी भासा राजस्थानी - शम्भु चैधरी,
स्वतंत्र प्रकाशन अधिकार के साथ,
रचना निर्माण दिनांक 27 नवंबर 2011)

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