- नन्दकिशोर जालान
80 वर्ष पहले और आज के सोच में काफी परिवर्तन आया है। एक समय था जब स्वतंत्रता के प्रति हमारी आस्थाहीन होती जा रही थी, लेकिन गांधी युग ने पुनः जागृत कर दी। इसी प्रकार हर क्षेत्र में आस्था और लगन की जरूरत है। सामाजिक संस्थाओं को सच्चे रूप से निरूपण करने में सभी की पढ़ाई-लिखाई में इसकी भूमिका मुख्य है। इसके अभाव में मनुष्य अपंग है।
किसी संस्था की उन्नति के साथ उसके कुछ पदाधिकारी अपने को काफी गौरवान्वित मानने लगते हैं। कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं जिनको अपने काम धन्धे से फुरसत नहीं, सामाजिक कार्य क्षेत्र में क्या सहयोग करेंगे। कुछ कार्यकर्ता ऐसे होते हैं जो सामाजिक कार्य करने वाले लोगों के दोषों को उजागर करने में अपना नाम व यश समझते हैं। कुछ ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो पद को छोड़ना नहीं चाहते जिससे संस्था का कुछ हित नहीं होता।
आज के समय में सामाजिक कार्यकर्ता का अभाव नहीं है। सभी व्यक्ति किसी न किसी रूप में समाज के कार्य से जुड़े रहते हैं। आज के युवक युवतियाँ भी इस क्षेत्र में काफी कार्यशील हैं। युवा शक्ति काफी विलक्षण होती है। उसके सामने शैक्षणिक विधा के नये-नये तरीके पेश किये जा सके और उसके अन्दर अभिलाषा जगायी जा सके तो निश्चित रूप से युवा शक्ति देश और समाज को ऊँचे से उचे स्थान पर पहुंचा सकती है।
मनुष्य की उपलब्धि चाहे जिस क्षेत्र में हो यानी बुद्धि, विवेक, जन सेवा और निजी कार्यक्षेत्र वे सभी विधाएं वहीं तक वरणीय है जहाँ तक वे कार्यशील हैं।
पुरानी सभी चीजें या बातें हमारे लिए स्मरण दिलाती रहती हैं। हमारी संस्कृति व सभ्यता सभी हमारे जीवन की थाती हैं। ये सभी कल की बातें हैं। सामाजिक
सुधारों, राजनैतिक या सांस्कृतिक विकल्पों, का आदान-प्रदान मुख्य है। राजनैतिक दृष्टि से पृथकवाद का विकल्प ढूँढना एवं समाज के युवावृन्द में स्वस्थ राजनीति की कर्मभूमि में पूरी तरह से अकथ लालसा की सृष्टि करना आज के बिन्दु के आगे वरणीय हो सकती है। राजनैतिक दृष्टि से देश अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर ले। तेजी से हो रहे परिवर्तनों के समुचित व गहन चिन्तन के अनुरूप समाज में बदलाव की स्वीकृति व गति हर संस्था के
अधिवेशनों की आज की महती आवश्यकता है।
राजनैतिक विकल्पों की हम बात करें तो आज के बिन्दु के ठहराव के आगे की ही बातें युवकों की बातें हो सकती है। अध्यापन के क्षेत्र में बढ़ते कदम इस कम्प्यूटर तथा इनफॉरमेशन टेकनोलोजी युग की बदलती स्थिति में विश्व के एक काने से दूसरे कोने तक संसर्ग, आर्थिक क्षेत्रों में उत्पादन एवं कार्य प्रणाली में हो रहे बदलाव आदि ऐसे बिन्दु हैं जिसके आज के ठहराव के आगे विस्तार ही विस्तार फैला हुआ है। अतीत और गौरव अपनी जगह है। उनकी ओर तेजी से कदम बढ़ाना अति आवश्यक है।
सामाजिक सुधारों के अन्तर्गत विधवा व परित्यकता के पुनर्विवाह के लिए मानस तैयार करना, विवाह शादियों में फिजुल खर्चा कम करना, बधु दहन जैसे कुकृत्य को दूर करना।
स्वधर्म शब्द पूर्व पद प्रधान है। सम्मेलन का अपना स्वधर्म है जो मारवाड़ी समाज द्वारा संचालित है। इसका स्वधर्म इसके उत्पत्ति काल से रहा है। इसका स्वधर्म सामाजिक सुधार वाणिज्य और उद्योग कहे गये हैं। इसका इतिहास साक्षी है कि इसने सदा से एकता की साधना अनेकता के माध्यम से की है। जीवन के हर क्षेत्र का अभिनन्दन किया है। इसी के आधार पर कहीं भी अपना स्थान कायम कर रखा है। स्वधर्म और भावात्मक एकता में आज एक अद्भुत तादात्म्य आ गया है। इसी के
आधार पर अगम्यता तक पहुंच पाने में समर्थ हुए हैं। इससे सम्मेलन को काफी बड़ी सफलता मिली है।
समाज के चिन्तक, क्रियाशील समाजसेवी द्वारा समाज व्यवस्था में समयानुकूल परिवर्तन करने के लिए विचार विमर्श होते रहना आवश्यक है। आज दुनिया का हर देश जितना वैज्ञानिक क्षेत्र में विकास कर सके, होड़ के साथ लगा है। इस आधार पर एक दूसरे से बैर स्वाभाविक है। इसी के आधार पर समाज में नाना प्रकार की विकृतियाँ भी पनपी और इसके साथ साथ इसके निराकरण के लिए समाज में महापुरुषों का आविर्भाव हुआ। इसी के साथ सुख, साधन, समानता व सम्पन्नता के चक्र को आगे बढ़ाया गया।
नास्त्रेदमस ने कहा था कि ‘‘सुखी और सम्पन्न समाज या समाज व्यवस्था बढ़ी है जिसमें आदमी दूसरे आदमी को स्नेह, सौजन्य सौहाद्र देता है। अन्यथा वह व्यवस्था दूषित होने लगती है। इस प्रकार मनुष्य का विशिष्ट व्यक्तित्व उभर कर सामाजिक व्यवस्था के परिवर्तन का क्रम चालू रखता है।’’
खलील जिब्रान ने कहा है ‘‘मैं आग हूँ। मेरी आग मेरे कूड़े करकट को जलाकर भस्म कर दे तो मैं अच्छा जीवन बिताऊ, यदि समाज में बिखरे कूड़े करकट में आग लगाकर उसे भस्म करने की शक्ति उभरे तो निश्चित रूप से वह अपने समाज के लिए और अधिक अच्छा जीवन का रास्ता प्रशस्त कर सकती है।’’
भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ स्त्री को आराध्य देवी के पद पर आसीन किया गया है। विभिन्न रूपों में उसकी पूजा अर्चना और मनन किया जाता है। उसके वरदान से मनुष्य पृथ्वी पर सुखी रहते हैं। सन्देह नहीं की हमारे समाज की नारियां आज हर क्षेत्र में ऊचाईयां माप रही हैं लेकिन बहुसंख्यक समाज अब भी प्रायः हर क्षेत्र में पिछड़ा है।
आवश्यकता है हमारी अस्मिता अक्षुण रहे हम इक्कीसवीं सदी के नागरिक है। आज के छात्र छात्राएं थोड़े अन्तराल के बाद पेश व समाज की युवा पीढ़ी में प्रवेश कर जायेंगे। युवा पीढ़ी हमारे समाज व देश की आधार शिला होती है। इन्हीं के कंधों पर देश की बागडोर रहती है। आज परिवेश तेजी से बदल रहा है। दुनिया सिमट कर छोटी हो गई है। आज हर जगह दूसरी जगह कुछ समय में जा आ सकते हैं।
अर्थ व्यवस्था में भी काफी परिवर्तन हो रहे हैं। संवेदनशीलता समाज का आभूषण है जिस पर हम सभी गर्व कर सकते हैं। आने वाले युवा युवतियों का विस्तृत दृष्टिकोण होना चाहिए जो अपनी संस्कृति की ज्ञान विज्ञान, शौर्य त्याग व सर्वोत्तम सामाजिक व्यवस्था के आधार पर फलती करने का मानस आज से ही तैयार करे और हमारी अस्मिता को कहीं आँच न आनें दें।
देश की स्वतंत्रता में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, लाला लाजपत राय ने कितनी लड़ाई लड़ी। उस समय के सामाजिक स्त्री पुरुषों का कितना सहयोग था। आने वाले समय में दुनिया के सिरमौर देशों में इसकी गिनती होनी आवश्यक है।
परिवर्तन की चलती चक्की के कारण आने वाले कल का चिन्तन नितान्त आवश्यक है पुरानी यादें पुरानी बातें अपनी संस्कृति और सभ्यता की एक महत्वपूर्ण थाती रही है। युवा दृष्टि और युवा शक्ति बड़ी विलक्षण होती है जो बौद्धिक वैज्ञानिक उन्नति में कुछ कर गुजरने की क्षमता रखती है। उसे मात्र दिग्दर्शन की जरूरत है। आज आर्थिक प्रभुता सर्वाधिक महत्व रखती है लेकिन सभी उसके शिखर पर नहीं चढ़ सकते हैं। देश का हर कोना अन्वेषण के पथ को सबल करने का आह्वान कर रहा है।
20वीं सदी के इतिहास का गांधीजी का स्वर्णिम युग इन अगणित क्रिया कलापों से भरा पड़ा है। उसने सारी कुरीतियों को समाज से बाहर फेकने के भरसक प्रयत्न किये और सफलता भी मिली।
विगत यानी 20वीं शताब्दी गांधी युग से प्रभावित रही है। 21वीं शताब्दीं किस युग की उत्पत्ति करती है आज इसका विशलेषण कठिन है, लेकिन कई विशिष्ट भविष्य वाणियाँ अपना रूपक दिखा जाती है। उदाहरणतः नास्त्रेदमस की नैपोलियन के उत्थान और पतन और उसी प्रकार हिटलर के उत्थान और पतन सम्बधी भविष्यवाणी अक्षरसः सत्य निकली। इनकी एक और भविष्यवाणी संसार के पश्चिमी भाग की प्रभुता शेष होकर संसार के पूर्वी भाग की प्रभुता हर क्षेत्र को अपने प्रभाव से आच्छादित करेगी। शायद आने वाले युग की सच्चाई की ओर इशारा कर रही है। ऐसी स्थिति में आने वाले वर्षों में भारत का प्रभाव काफी मात्रा में उभरेगा इसमें सन्देह नहीं दिखता। चूँकि आज देश हर विधा के अन्तराल से जुड़ा हुआ है इसलिए आने वाला समय समाज के लिए अत्यन्त संवेदनशील और महत्वपूर्ण होगा तथा समाज की युवा पीढ़ी का दायित्व सर्वाधिक बढ़ेगा। इस भविष्य के लिए सभी क्षेत्रों में समाज का अवदान बढ़े, सम्मेलन को इस ओर समाज का आह्वान करते रहना होगा।
विश्लेषण बहुत हुआ अब तो कर्म की आवश्यकता है |
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