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रविवार, 21 दिसंबर 2008

शिक्षा के क्षेत्र में मारवाड़ी समाज

- गोविन्द प्रसाद डालमिया, भूतपूर्व अध्यक्ष
झारखण्ड प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन

मारवाड़ी समाज समय के अनुसार अपने को ढालने की क्षमता दिखाता रहा है। उसने वकील,डॉक्टर, इंजीनियर एवं चाटर्ड एकाउन्टेंट बड़ी संख्या में दिए हैं। आई.ए.एस. अर्थशास्त्री आदि भी समाज के बहुत से लोग हैं। अब प्राइवेट संस्थाओं में एडमिनिस्ट्रेटर भी मारवाड़ी समाज के काफी व्यक्ति हैं। पर अभी भी मारवाड़ी समाज में लड़के-लड़कियों को शिक्षा दिलाने में समाज के द्वारा सहायता की आवश्यकता है।
जिस प्रकार मारवाड़ी समाज के लोग खाली हाथ बाहर गये एवं सब जगह अपना सिक्का जमाया, उसी प्रकार समाज के लड़के लड़कियां खाली हाथ, सिर्फ एक सर्टिफिकेट लेकर विदेश जा रहे हैं। आज मारवाड़ी समाज में शायद ही कोई परिवार होगा, जिसका कोई सम्बन्धी विदेश में नहीं हो। जो डॉक्टर, इंजीनियर आदि बन कर या पढ़ाई करने विदेश गए, उन्होंने काफी सम्पन्नता हासिल की। इसीलिए आज काफी संख्या में समाज के लड़के- लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने कोे विदेश भी जा रहे हैं उनमें से अधिकांश वहीं पर बस भी जा रहे हैं। इसे मैं शुभ लक्षण मानता हूँ। पर समाज के गरीब तबके के परिवारों के लड़के लड़कियों को शिक्षा दिलाने, खासकर उच्च शिक्षा दिलाने के लिए, आर्थिक मदद की आवश्यकता है। शिक्षा समिति यह काम कर रही है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा समितियों को मजबूत किया जाय। शिक्षा समिति विद्यार्थी को जो आर्थिक सहायता देती है वह बहुत ही कम है। इसे मंहगी को ध्यान में रखते हुए बढ़ाया जाना चाहिए। अपने समाज के किसी भी लड़के लड़की को पढ़ाई में गरीबी के कारण रूकावट नहीं आनी चाहिये। साथ ही वह शिक्षित हो जाय, तो शिक्षा उसे गरीबी से छुटकारा अवश्य दिला दे।
यह भी आवश्यक है कि शहरों में मारवाड़ी लड़के लड़कियों के लिए विशेषकर लड़कियों के लिए छात्रावास बनाये जाएं। लड़के तो किसी सम्बन्धी के यहां, लॉज में या चार-पांच लड़के एक कमरा भाड़े पर लेकर भी गुजारा कर लेते हैं। पर लड़कियों को, परिवार वाले दूर शहर में अकेले रखना असुरक्षित समझते हैं। नतीजा यह होता है कि गांवों की प्रतिभावन लड़कियों की भी पढ़ाई छूट जाती है। छात्रावास भाड़े के मकान में भी शुरू किए जा सकते हैं। 80 प्रतिशत उपलब्ध स्थान में लड़कियां रहेंगी, इस हिसाब से खर्च जोड़कर छात्रावास शुल्क का निर्धारण किया जा सकता है। इससे हर महीने घाटा नहीं होगा। पर इसके लिए समाज और इन शहरों के लोगों को आगे आना होगा।
कैट के लिए एवं अन्य उच्च श्रेणी के प्रतिष्ठित कॉलेजों में भर्ती के लिए कोचिंग की आवश्यकता होती है। उसमें करीब 80 हजार रुपये प्रति विद्यार्थी खर्च हो जाता है। इस कोचिंग के लिए न तो बैंक से कर्ज मिल पाता है और न शिक्षा समिति से आर्थिक सहायता मिल पाता है। आजकल बैंकों से विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए कर्ज मिल जाता है। पर कर्ज मिलने में कुछ समय लगता है और कर्ज मिलने तक विद्यार्थियों को आर्थिक कष्ट होता है।
‘‘अन्य पिछड़ी जाति’’ का सर्टिफिकेट रहने से बच्चों के स्कूल एवं कॉलेज में नामांकन में एवं बाद मे नौकरी मिलने में सुविधा होती है। मारवाड़ी समाज के कुछ वर्ग जैसे नाई आदि को पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र पाने का हक हैं। पर उनके लिए भी कम से कम झारखण्ड में, या सर्टिफिकेट पाना बहुत मुश्किल एवं खर्चीला है। मुख्य दिक्कत वैश्य लड़के लड़कियांे को आती है। झारखण्ड में गैर मारवाड़ी वैश्य लड़के लड़कियों को, अग्रहरि, वर्णवाल आदि को पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र पाने का कानूनी हक है। पर अग्रवाल माहेश्वरी ओसवाल जैन आदि विद्यार्थी पिछड़े वर्ग का प्रमाण पत्र पाने के लिए पात्र नहीं समझे जाते हैं। यह कानून गलत है और इस कानून में सुधार होना चाहिए। मारवाड़ी सम्मेलन को इस कानून को सुधारे जाने में सक्रिय भाग लेना चाहिए।

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