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रविवार, 21 दिसंबर 2008

आत्मलोचन करने का समय

सत्यनारायण बीजावत


परिचयः सत्यनारायण बीजावत, पता-256/40, कड़क्का चौक, अजमेर (राजस्थान), शिक्षा-बी.ए., एल.एल.बी., जन्म-3 नवम्बर 1932, जन्म स्थान-अजमेर (राजस्थान) पं0 रेलवे से सेवा निवृत्त सैक्शन इंजीनियर राजस्थानी व हिन्दी भाषा में साहित्य सृजन 1983 में राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत आकाशवाणी के जयपुर केन्द्र से समय समय पर राजस्थानी काव्य पाठ, प्रकाशन-आँधी के दीप (उपन्यास), लम्हा लम्हा जिन्दगी (गजल संग्रह), अन्तभारती साहित्य एवं काव्य परिषद तथा स्वयं सिद्ध संस्था से सम्बद्ध।


मारवाड़ी समाज के लिए यह आत्मलोचन करने का समय है कि कल हम कहाँ थे और आज कहाँ हैं, कोई भी समाज एक दिन में आकाश नहीं छू सकता, उन्नति और प्रगति कड़ी मेहनत स्पष्ट लक्ष्य और निरन्तर अभ्यास व अथक प्रयास से ही संभव है, अधिक पीछे दृष्टि दौड़ाने की आवश्यकता नहीं यदि स्वतंत्रता पूर्वकालिक दशा पर ही दृष्टिपात करें तो पता चल जाएगा कि हमारा समाज एक पिछड़ा हुआ अशिक्षित एवं रूढ़ियों में जकड़ा हुआ समाज था जिसके अधिकांश लोग निर्धन और अधिक हुआ तो श्रेणी प्राप्त लोग थे। जो कठिन परिश्रम और ईमानदारी से पहचाने जाते थे।
मारवाड़ी समाज के लोग कभी भी अपराधी प्रवृत्ति के नहीं रहे इसी लिए मारवाड़ी समाज के व्यक्ति सुख शांति से जीवन व्यतीत करते हुए निरन्तर उन्नति के लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहे हम यह तो नहीं कह सकते कि अन्य समाजों की तरह मारवाड़ी समाज ने उन्नति का लक्ष्य प्राप्त कर लिया लेकिन इतना अवश्य कह सकते हैं कि हमने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए शिक्षा और व्यापार में संतोष प्रद उन्नति अवश्य की हैं। अतः अन्य समाज के लोग मारवाड़ी समाज का उदाहरण देते हुए यह कह बैठते हैं कि इस पृथ्वी पर कोई भी ऐसा कोना नहीं है जहाँ मारवाड़ी नहीं पहुँचा हो।
यदि वास्तव में देखा जाए तो व्यापार किसी समाज विशेष की थाती नहीं है इसके लिए सम्पूर्ण जनता ही स्वतंत्र है जो चाहे जैसा, जहाँ और चाहे जब अपना व्यापार कर सकता है। ऐसा हमारे देश का संविधान कहता है लेकिन यह अनुभव किया जा सकता है कि वही व्यक्ति इस प्रतिद्वन्द्विता के युग में सफल होकर टिक सकता है। जो कठिन परिश्रम के साथ ईमानदारी से अपना कार्य सम्पन्न करें। ईमानदारी के अभाव में अल्प कालिक सफलता ही प्राप्त हो सकती है। इसी लिए बड़े बड़े उद्योग घराने मारवाड़ी समाज के व्यक्तियों के पास हैं जिन्हें विश्व जगत में उच्च स्थान प्राप्त हैं। चाहे बिड़ला घराना हो या फिर लक्ष्मी मित्तल अथवा बांगड़ परिवार जो सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय के लिए जन कल्याणार्थ रोजगार से लेकर चिकित्सा सहायतार्थ चिकित्सालय तथा शिक्षा के क्षेत्र में समान सेवा के रूप में विद्यालय व महाविद्यालय खोलकर समाज को आगे बढ़ाने का कार्य किया है।
अतः आज हम यानि मारवाड़ी समाज के लोग गर्व से यह कह सकते है कि हम कल जिस अशिक्षा के अंधकार में थे उससे बाहर निकल चुके हैं आज हमारे समाज के युवक ही नहीं बल्कि युवतियाँ भी शिक्षा के प्रकाश में खुल कर साँस ले रही हैं। शिक्षित समाज ही व्याप्त रूढ़ियों की जंजीरों से मुक्त हो सकते हैं एक वह भी समय था जब पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, नारी अशिक्षा, मृत्यु भोज प्रथा, जुआ प्रथा इत्यादि बुराईयाँ समाज में व्याप्त थी। परन्तु समय समय पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा एक एक कर उपरोक्त बुराईयों को दूर करने के प्रयास और उपाय किए जाते रहे हैं। जिनका सफल आज हमारे सामने ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव सामाजिक समक्ष दृष्टव्य है। पर्दा प्रथा जो हमारे समाज में हवा पानी की तरह व्याप्त थी वह आज नहीं के बराबर है। इसी तरह दहेज प्रथा से भी मारवाड़ी समाज अभिशप्त था और हम आज भी छाती ठोक कर नहीं कह सकते कि इस बुराई से समाज मुक्त हो गया है लेकिन फिर भी इस बुराई से हमारा समाज डट कर मुकाबला कर रहा है। पढ़ी लिखी युवा पीढ़ी खुल कर इसके विरोध में खड़ी हो गई है और जगह जगह इस बुराई पर नियन्त्रण प्राप्त किया जा रहा है इस आशा के साथ कि शीघ्र ही समाज इस बुराई से मुक्त हो सकेगा। यह नारी शिक्षा का ही प्रभाव है कि दहेज लोभियों को सामने लाकर समाज में ऐसे दूल्हों की बरातें लौटाने के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करने का नारी में साहस भर दिया। इसी प्रकार श्क्षिित युवकों ने मृत्यु भोज तथा जुआ आदि का विरोध कर समाज को अनचाहे कर्ज से बचाने का सत्कार्य किया है साथ ही हमारी सामाजिक संस्थाओं का भी इस जनजागरण के कार्य में प्रशंसनीय योगदान है। समाज विकास गत स्पष्ट वर्षोंं से मारवाड़ी समाज के मुखपत्र की भूमिका निभा रहा है साथ ही जन जागरण का शंख फूंक रहा है। देश विदेश में मारवाड़ी समाज को एक सूत्र में बांध कर समाज की वास्तविक दशा से सभी को अवगत करा रहा है। हम कल क्या थे, आज क्या है और कल कहाँ होंगे।

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