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सोमवार, 29 जून 2009

समाज का संगठन-सम्मेलन की भूमिका

- प्रो.(डॉ.)विश्वनाथ अग्रवाल-
‘‘संधे शक्ति कलेयुगे’’


लेखक सैंतीस वर्षों तक राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर, बिहार कॉलेज सेवा आयोग के सदस्य (1987-90) तथा नालन्दा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति बिहार प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के महामंत्री (1977-80), उपाध्यक्ष (1980-82) सम्मेलन के मुखपत्र ‘बिहार सम्मेलन’ के अनेक वर्षों तक सम्पादक, अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन की समितियों के सदस्य रहे हैं। सम्प्रति अनेक समाज सेवी, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक संस्थाओं में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। सम्पर्क: 703ए, ह्नाईट हाउस अपार्टमेन्ट, बुद्ध मार्ग, पटना-800001 - सम्पादक


संगठन ही समाज की शक्ति का आधार होता है। शक्ति से परिवार और परिवारों के समूह से समुदाय तथा समाज का निर्माण होता है। समाज में रहकर ही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति समाज पर आश्रित होता है। इसलिए यह आवश्यक तथा उचित है कि व्यक्ति समाज में रहे, समाज से सहयोग प्राप्त करे तथा समाज को सहयोग प्रदान करे। व्यक्ति समाजसापेक्ष है क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति और समाज में अन्योनाश्रय सम्बन्ध है।
समाज में संगठन कैसे हो? परस्पर मिलन, विचारों का आदान- प्रदान, सामूहिकता की भावना, दुःख-सुख में भागीदारी, एक-दूसरे की भावनाओं का आदर, प्रत्येक व्यक्ति का समादर एवं सम्मान, स्वार्थरहित व्यवहार, छल-प्रपंच का तिरस्कार, परस्पर सौहार्द्धपूर्ण सहानुभूति एवं सद्भावना आदि चन्द ऐसे लक्षण हैं जो समाज को एकता के सूत्र में पिरो सकते हैं। समाज के अन्य व्यक्तियों द्वारा किये गये अच्छे कार्यों की सराहना, किसी पर संकट आने पर सहानुभूति जताना तथा संकट से उबारने में सहयोग एवं समर्थन प्रदान करना सभ्य और सुसंस्कारी समाज के परिचायक तत्त्व हैं। तभी समाज में एकता एवं अखंडता आती है।
मारवाड़ी समाज एक प्रबुद्ध समाज है। यह एक गतिशील एवं क्रियाशील समाज है। इस समाज का हर वयस्क व्यक्ति उद्यम तथा परिश्रम द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करता है। वह परमुखापेक्षी रहना नहीं चाहता। अपनी बुद्धि और पराक्रम का प्रयोग कर वह जीवन की सुख-सुविधायें जुटाने का उपक्रम करता है। उद्भव तथा विकास के मार्ग पर चलने के यत्न-प्रयत्न करता है। ये बातें अच्छी लगती हैं। किन्तु इस समाज का अभीष्ट मानो धनोपार्जन ही हो गया है। शिक्षा, संस्कृति, साहित्य, कला, संगीत, क्रीड़ा, मनोरंजन, विज्ञान, आध्यात्म आदि से यह समाज विमुख-सा प्रतीत होता है। किसी समाज का सर्वांगीण विकास तभी माना जाता है जब वह धनोपार्जन के साथ इन क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बनाये। धनपति के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान तथा जीवन की अन्य विधाओं में भी हम शीर्ष पर पहुँचने का प्रयत्न करें, तभी एक विकसित-आधुनिक समाज की श्रेणी में हमारी गणना हो सकेगी। इक्का - दुक्का उपलब्धियां पर्याप्त नहीं मानी जा सकती हैं।
उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिये समाज को संगठित करना आवश्यक प्रतीत होता है। परस्पर संपर्क अर्थात् मिलन बहुत बड़ा कारक बनता है। संपर्क से संवाद, विचारों का आदान-प्रदान और फलस्वरूप सौहार्द्ध, सद्भाव, सहयोग, सेवा और समर्पण का वातावरण निर्मित होता है। आपसी वैमनस्य तिरोहित होता है, जानने-समझने के अवसर उत्पन्न होते हैं तथा सामंजस्य एवं सन्तुलन का भाव जागृत होता है।
शहर हो या कसबा अथवा गाँव - समाज के लोग समय, निर्धारित कर लें कि माह में एक बार सभी लोग साथ मिल बैठेंगे-धनी, मध्यम वर्ग तथा अन्य सभी एक स्थान पर मिलकर बैठेंगे। सुख-दुःख बाँटें, प्रेम एवं आत्मीयता का सम्बन्ध बढ़ायें, सहयोग करें। इसके अतिरिक्त पर्व-त्यौहारों जैसे होली, दशहरा, दीपावली, जन्माष्टमी आदि तथा पारिवारिक एवं सामाजिक समारोहों यथा महापुरुषों की जयंती, स्थानीय समाज के किसी विशिष्ट व्यक्ति की पुण्यतिथि, कोई पुण्यार्थ निर्माण अथवा समर्पण कार्य आदि अवसरों पर मिलने, कुशल-क्षेम बाँटने तथा आनन्द के क्षण भोगने के अवसर उपलब्ध कराये जायें। समाज की बैठकों में व्यक्तिगत/परिवार सम्बन्धी चर्चाओं के अतिरिक्त अन्य विषयों पर परिचर्चा भी की जानी चाहिये।
वातावरण एवं पर्यावरण का प्रदूषण मानवजाति के लिए एक संकटपूर्ण चुनौती बन गया है। हम बैठकों में अपने नगर,कसबे या ग्राम में सामूहिक रूप से इस सम्बन्ध में योगदान कर सकते हैं-वृक्ष लगाना तथा उनकी देखभाल करना एक प्रमुख कार्य हो सकता है। सामूहिक रूप से हम अपने क्षेत्र में स्वच्छता बनाये रखने, विद्यालय, चिकित्सालय, पुस्तकालय, खेलकूद की सुविधायें, साहित्य कला तथा संगीत के लिये संस्थान, छात्रावास, धर्मशाला, विवाह भवन, मन्दिर आदि की स्थापना तथा संचालन में संलग्न होकर एक सुन्दर समाज को साकार कर सकने में समर्थ हो सकते हैं। बैठकों में राजनीति पर भी परिचर्चा होनी चाहिये-खासकर एक जागरुक मतदाता के रूप में मतदान अवश्य करें। समाज के किसी योग्य,समाजसेवी तथा निष्ठावान व्यक्ति की राजनैतिक

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