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रविवार, 28 जून 2009

मातृभाषा राजस्थानी

नन्दलाल रूँगटा,
अध्यक्ष, अखिल भरतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन

Nandlal Rungta, Chaibasa


राजस्थान विधानसभा द्वारा 25 अगस्त 2003 को, राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने का एक संकल्प रूपी प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें कहा गया कि ‘‘राजस्थान विधानसभा के सभी सदस्य सर्व सम्मति से यह संकल्प करते हैं कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया जाए। राजस्थानी भाषा में विभिन्न जिलों में बोली जाने वाली भाषा या बोलियाँ यथा ब्रज, हाड़ौती, बागड़ी, ढूँढ़ाड़ी, मेवाड़ी, मारवाड़ी, मालवी, शेखावटी आदि शामिल हैं।’’
यदि हम इस प्रस्ताव की गम्भीरता पर विचार करें तो, हम पाते हैं कि यह प्रस्ताव खुद में अपूर्ण और विवादित है। ‘‘इसमें कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि हम किस भाषा को राजस्थानी भाषा के रूप में मान्यता दिलाना चाहते हैं।’’ एक साथ बहुत सारी बोलियों को मिलाकर विषय को अधिक उलझा दिया गया है। इस प्रस्ताव से ही राजस्थान में पल रहे भाषा विवाद की झलक मिलती है। हम चाहते हैं कि राजस्थान सरकार अपनी बात को तार्किक रूप से स्पष्ट करे कि वो आखिर में केन्द्र सरकार से चाहती क्या है?
मरुप्रदेश अरावली पर्वत के दानों ओर है, इसलिए मरुवाणी, मारवाड़ी और राजस्थानी भाषा अरावली के पूर्व और पश्चिम दोनों में विराट भाषा रही है। इसमें कृषि विद्या, पशुपालन विज्ञान, उद्योगपतिओं की उद्यम विद्या, व्यापारियों-व्यावसायियों की व्यापार-वाणिज्य विद्या, शूरवीरों की युद्ध विद्या, प्रेम-श्रृंगार विद्या, अकाल और दुर्भिक्ष से पड़ित मरुभूमि की कारुणिक गाथा, सामाजिक जीवन तथा सांस्कृतिक जीवन नीति, निर्गुण और सगुण भक्ति की आराधना विद्या, राजस्थानी भाषा में अपनी सशक्त एवं हृदयग्राही अभिव्यक्ति उजागर करती रही है इसका साहित्य विपुल एवं विराट है। इस असाधारण क्षमता वाली भाषा को ही राजस्थानी भाषा कहा जाता है।
वीरगाथा काल का डिंगल काव्य और उसकी समृद्ध परम्परा केसरीसिंह जी बारहठ, उदयराज जी उज्ज्वल, शक्तिदान जी कविया तथा नाथूदान जी महियारिया तक अक्षुण्ण चली आई। आधुनिक राजस्थानी में गणेशीलाल व्यास ‘उस्ताद’, सुमनेश जी जोशी, चन्द्रसिंह जी बादली, कन्हैया लाल जी सेठिया, गजानन वर्मा, मेघराज मुकुल, रेवतदान चारण, सत्यप्रकाश जी जोशी, रघुराज सिंह हाडा, बुद्धिप्रकाश पारीक, कल्याण सिंह राजावत, डॉ. शान्ति भारद्वाज ‘राकेश’, प्रेमजी प्रेम, अर्जुनदान जी चारण आदि कवियों की भाषा डिंगल की समृद्ध परम्परा में जुड़ाव पैदा करती हुई जिस राजस्थानी भाषा का स्वरूप ग्रहण करती है, वह अरावली पर्वत के पूर्व और पश्चिम में समान रूप से समझी, बोली और लिखी जाती है।
राजस्थानी शब्द कोश के निर्माण का कार्य वर्तमान में महामहोपाध्याय रामकरण असोपा ने प्रारम्भ किया था जिसे उनके योग्य शिष्य श्री सीताराम लालस ने पूर्ण किया। इसी प्रकार राजस्थानी कहावतों के संग्रह का काम श्री लक्ष्मीलाल जोशी ने प्रारम्भ किया था और भी कई लोगों ने किया है पर अभी इस हेतु सन्तोषजनक कार्य शेष है। लोक संस्कृति के विविध प्रसंगों को पण्डित मनोहर शर्मा, कन्हैयालाल सहल, नरोत्तम स्वामी, रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत, प्रो. कल्याण सिंह शेखावत, कोमल कोठारी आदि ने निरन्तर अग्रसर किया है। आकाशवाणी से राजस्थानी में समाचार प्रसारण में वेद व्यास की महती भूमिका रही है, यद्यपि दूरदर्शन पर भी राजस्थानी समाचार और कार्यक्रमों का प्रसारण होता है पर तन्मयता, तल्लीनता और तत्परता का अभाव दृष्टिगोचर होता है। राजस्थानी भाषा में दैनिक समाचार पत्र अभी प्रकाशित नहीं हो रहा है। हाँ! मासिक पत्रिका ‘माणक’, नैणसी और त्रैमासिक पत्रिका ‘वरदा’ का राजस्थानी भाषा में प्रचार और प्रसार उल्लेखनीय है। हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कभी-कभी एक-आध स्तम्भ के रूप में राजस्थानी लेख निकलते रहते हैं। परन्तु हमें यह देखना होगा कि एक पूर्णकालीन राजस्थानी दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन किस प्रकार किया जा सके, इसके लिये हमें न सिर्फ राजस्थानी में बात करने की जरूरत पर बल देना होगा, बच्चों में राजस्थानी पढ़ने-लिखने की आदत बनानी होगी और यह तभी संभव हो सकेगा जब हम इस भाषा को स्थायी रूप से पाठ्याक्रम में शामिल कर सकेंगे।
भारत के संविधान के निर्माण के समय हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का स्थान दिया गया और अंग्रेजी को पन्द्रह वर्ष तक लागू रहने का प्रावधान था उस समय आठवीं अनुसूची में चैदह भाषाएँ थीं बाद में दो हजार तीन तक आठ और क्षेत्रीय भाषाओं को जोड़ा गया अब कुल बाईस भाषाएँ आठवीं अनुसूची में हैं। राजस्थानी भाषा को निकट भविष्य में आठवीं अनुसूची में लिए जाने की पूरी-पूरी सम्भावना है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी राजस्थानी भाषा-भाषियों को एकजूट होकर एक स्वर में राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिये हर संभव प्रयास करना चाहिये। राजस्थान से निर्वाचित सभी सांसदों से हम विशेष रूप से अपील करना चाहते हैं कि अपनी मातृभाषा के लिये वे सचेत होकर इस ऐतिहासिक कदम के लिये कार्य करें। मेरी अपने समाज के बड़े-बूढ़ो से लेकर बच्चों तक से साग्रह अनुरोध है कि वे व्यक्तिगत रूप से अपनी बातचीत में अधिक से अधिक अपनी मातृभाषा का उपयोग करें।end

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