चलो आज खिड़कियों से कुछ हवा तो आई,
कई दिनों से कमरे में घुटन सी बनी हुई थी।
हवाओं के साथ फूलों की खुशबू
समुद्री लहरों की ठंडक,
थोड़ी राहत,थोड़ा शकुन,
पहुँचा रही थी मेरे मन को शकुन
कुछ पल पूर्व मानो कोई बंधक बना लिया था
समुंदर पार कोई रोके रखा था,
कई बंधनों को तोड़,
स्वतंत्रता के शब्द तालबज रही थी एक मधुर धुन।
सांय...सांय.....सांय.....सांय.....मैं नितांत,
निश्चित व शांत मन से
एकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुफ्त उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाताअपने - आपसे?
- शम्भु चौधरी, कोलकाता
जन सुराज अभियान -4
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*प्रशांत किशोर - जन सुराज अभियान -4*
*यह कहानी शुरू होगी बिहार से, पर रुकेगी नहीं बिहार तक.. प्रशांत किशोर*
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जन सुर...