आपणी भासा म आप’रो सुवागत

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गुरुवार, 31 जुलाई 2008

अपने वोट बेचते हो!

- शम्भु चौधरी


मंहगाई से त्रस्त, समस्याग्रस्त
एक किसान ने जैसे ही,
अपने सांसदों के हाथों में
नोटों के बण्डल देखे,
बड़ी हीन भावना से चिल्लाया-
देखो! देखो! भागवान!
संसद को कैसे नंगा किया
यह इंसान!
पास खड़ी पत्नी चिल्लाई
बड़ी नेकी बखानते हो!
इलेक्सेन के समय
तुम भी तो
एक जोड़ी धोती के लिए
अपने वोट बेचते हो!।

बुधवार, 30 जुलाई 2008

शम्भु चौधरी की चार झणिका- 2

1. गंगा
तन मन से जो हो
नंगा
उसका नाम है,
गंगा।


2.सत्ता की कुंजी
जेब में हो नोट
और
धर्मनिरपेक्षाता
के वोट।


3. परिभाषा
एक भाषा जो दूसरी भाषा को
बांटता हो,
उस भाषा को कहते हैं
परिभाषा।


4. शांति
धमाके से फैली
अशांति,
फिर हर तरफ
शांति ही शांति

सोमवार, 28 जुलाई 2008

शम्भु चौधरी की चार झणिका

1. कलतक उस बुढ़िया ने
बहु पर जुल्म ढहाये
आज बुढ़ापे में
बहु ने चुकाये।


2. उसने पहाड़ को इस तरह
नीचा दिखाया,
पाहड़ पर खड़ा हो
अपना झंण्डा लहराया।


3. देखो ये कैसी रीत आई
उसने खुद की इज्जत देकर
अपनी
इज्जत बचाई ।


4. एक दल वाले ने
दूसरे दल से हाथ मिलाया
फिर दोनों ने मिलकर
संसद को 'दलदल' बनाया ।

[shambhu choudhay]

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