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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

कवि ‘मस्त दम्माणी’ नहीं रहे

संजय बिन्नाणी

S Narayan Dammani


राजस्थान के सांस्कृतिक शहर बीकानेर में जन्मे और कोलकाता में कवि-गीतकार, आधुनिक हिन्दी कविता में 'चित्रक’ शैली के जन्मदाता के रूप में प्रसिद्ध हुए कवि एस. नारायण दम्माणी 'मस्त’ को याद किया उनके साथियों, प्रशंसकों ने। स्थानीय फ्रैण्ड्स युनियन क्लब में, माहेश्वरी पुस्तकालय व परचम के संयुक्त तत्वावधान में कवि एस. नारायण दम्माणी की स्मृति में आयोजित सभा में, क्लब के वरिष्ठ सदस्य सूरज रतन कोठारी ने उनकी एक रचना की आवृत्ति करते हुए बताया कि वे हमेशा ही अपनी फक़ीराना और इश्किया मस्ती में रहते थे। मोतीचन्द कासट ने क्लब के एक कोने को दर्शाते हुए कहा कि यही उनका प्रिय व निश्चित स्थान था। यहाँ बैठकर उन्होंने कई रचनाएँ रचीं। क्लब सदस्य चाचा राठी ने उनके साथ बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि वे हमेशा कविता की रौ में ही रहते और बैठे-बैठे ही किसी भी बात पर कविता रच दिया करते।
कवि आलोक शर्मा ने उनका स्मरण करते हुए कहा कि उनकी रचनाएँ पैनी व धारदार होती थीं। हम स्वयं कवि होते हुए भी दम्माणीजी की रचनाओं की आवृत्ति किया करते थे।
इस अवसर पर बीकानेर से भेजे गए अपने संदेश में कवि श्रीहर्ष ने एस. नारायण को अपने बड़े भाई के रूप में याद करते हुए लिखा कि वे सीधे, सरल एवं अपनी धुन में मस्त रहने वाले थे। अपनी बात वे बिना लाग-लपेट के कहते। अपने गीतों को गाते वक्त वे उसकी लय से एकाकार हो जाते। उन्होंने मुक्त छंद की गंभीर कविताएँ भी लिखी हैं। कवि नवल ने उन्हें हिन्दी का पहला 'डी-मैट’ कवि बताते हुए, उनकी कई रचनाओं का उल्लेख अपने लेख में किया है।
प्रधान वक्ता के रूप में रचनाकार संजय बिन्नाणी ने 'मस्त’ के साथ अपनी भेंट-मुलाकातों की चर्चा करते हुए कहा कि वे अकादमिक दृष्टि से पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी काव्य प्रतिभा जन्मजात थी। शास्त्रीय संगीत की उन्हें अच्छी जानकारी थी। इसीलिए गीतों और ग़ज़लों के उनके तरन्नुम विविधता भरे होते। मौज में आने पर कहीं भी शुरू हो जाते। लोहिया से प्रभावित होकर, युवावस्था में वे आन्दोलनों की राह पर भी चले। रोजी-रोटी के लिए निरंतर संघर्ष करते रहे। अलग-अलग कालखण्डों में उन्होंने रचा तो बहुत, लेकिन उनके प्रकाशन की ओर सक्रिय नहीं हो पाए।
उनकी जिन रचनाओं से उन्हें प्रसिद्धि मिली, वे उस काल (सन् 195०-55 के आसपास) के लिए सर्वथा नई भंगिमा लिए हुए थीं। उस समय उन्होंने इन रचनाओं में 'हिंगलिश’ भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से किया। वे उन रचनाओं को 'चित्रक’ कहते थे। इन 'चित्रकों’ में उन्होंने जीवन के हर पक्ष को अभिव्यक्ति दी। राजनीति पर पैने और धारदार कटाक्ष किए। आधुनिक काल में क्षणिकाएँ, हँसिकाएँ, व्यंगिकाएँ आदि में मुझे 'चित्रक’ का ही विकास हुआ दिखता है। ऐसे सैकड़ों चित्रकों, गीतों, ग़ज़लों और 'प्रसाद शतक’ के रचयिता, एस. (सूरज) नारायण दम्माणी का देहावसान भले ही हो गया, वे अपनी रचनाओं में अमर हैं, अमर रहेंगे।
स्मृति सभा की अध्यक्षता, पुस्तकालय के अध्यक्ष दाऊलाल कोठारी ने की तथा संचालन मुकुन्द राठी ने किया।

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