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बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

क्या मेरी सोच गलत थी, ठाकरेजी?

क्या मेरी सोच गलत थी, ठाकरेजी? [keya meri soch galat thi Thakre ji?]
लेखक : - रामनिरंजन गोयनका

इस महान भारत का एकमात्र बिहारी समाज ही राष्ट्र के प्रति स्वाभिमानी समाज है, जो गर्व से अपना परिचय ‘‘हिन्दुस्तानी’’ के रूप में देता है, बाकी तो हम सब राजस्थानी, असमिया, बंगाली, पंजाबी, मदरासी, गुजराती आदि आदि हैं।
इस महान भारत राष्ट्र में एक मात्र प्रदेश है जिस प्रदेश के नाम के साथ ‘‘राष्ट्र’’ शब्द जुड़ा है वह भी ऐसा वैसा नहीं, वह नाम है ‘‘महाराष्ट्र’’। महान भारत राष्ट्र का एक महान अंगराज्य महाराष्ट्र, अर्थात छत्रपति शिवाजी महाराज की तपोभूमी महाराष्ट्र, जिस महान राष्ट्रसेवक ने अखण्ड भारत की कल्पना की थी और अनेक विपरीत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मुगलों से लोहा लिया था-इसका इतिहास साक्षी है। सारे राष्ट्र को शिवाजी का स्वदेश प्रेम और जीजाबाई की वीरव्रती संतान की राष्ट्र समर्पित वीरता पर गर्व है।
इस महान भारत राष्ट्र में, इसके विभिन्न प्रान्तों भाषाई प्रदेशों मे अनेक समाज सेवी संगठन, युवा संगठन तथा जातीय संगठन गठित हुये हैं-उनके नाम गोत्र तथा उद्देश्यों और कार्यों में उसकी क्षेत्रीयता की झलक हमें देखने को मिलती है जो अधिकतर एक सीमा में, एक परीधि में बंधे हुये कार्य करते हैं-परन्तु क्षेत्रवाद की संकरी गली से ऊपर उठकर प्रखर राष्ट्रवाद के निर्माण के लिये इस महान भारतराष्ट्र में महाराष्ट्र ही एक ऐसा प्रदेश है जिसके वीर सपूतों ने सन् 1925 में महाराष्ट्र के ही प्राचीन नगर नागपुर में सर्वप्रथम एक नये युवा संगठन का गठन कर राष्ट्रीयता की अलख जगाई थी और उस युवा संगठन का नाम रखा गया था ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ और उस युवा संगठन के प्रणेता थे मराठा देशभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगवार। हेडगेवारजी ने उस संगठन का नाम जातीयवाद पर नहीं रखा जैसा कि आज यह यत्र-यत्र देख रहे हैं। हमारा मानना है कि प्रखर राष्ट्रवाद के कवच में ही जातिवाद की रक्षा हो सकती है। तो राष्ट्रवाद के माध्यम से पूरे भारत राष्ट्र को जोड़ना था। यही था महान उद्देश्य परमपूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के सहयोगियों तथा निष्ठावान समर्पित देशभक्त मराठा प्रचारकों में परम पूजनीय माधव सदाशिव गोलवलकर जिन्हें हम गुरुजी के नाम से अधिक जानते हैं-दूसरे सरसंघचालक बने। इसके अतिरिक्त माननीय एकनाथजी रानाडे (महाराष्ट्रीय न थे) जिन्होंने भारत महासागर के बीच विवेकानन्द शिला पर प्रथम विवेकानन्द स्मारक की स्थापना की जिसके केन्द्र गुवाहाटी समेत सब सम्पूर्ण भारत में स्थापित हो गये हैं। ये एकनाथजी रानाडे ही सर्वप्रथम असम में संघ के स्थापनार्थ गुवाहाटी पधारे थे। उस समय मैं युवा था हमलोगों में स्व. केशवदेवजी बावरी, स्व. कामाख्यारामजी बरुवा, स्व. भास्करजी शर्मा, नगांव के स्व. राधिका मोहन गोस्वामी, स्व. गणपतरायजी धानुका, स्व. केदारमलजी ब्राह्मण ने उनका स्वागत किया तथा नीति के अनुसार उन्हें कामाख्यरामजी बरुवा के घर पर रहने की व्यवस्था हुयी। सबसे पहले संघ की स्थापना शाखा उजान बाजार जोरपुखुरीपार के स्व. केशवकान्त बरुवा के बंगले के अहाते में प्रथम शाखा लगी। उस समय हमें ध्वज नहीं मिलता प्रारम्भ में यू हीं पंक्तिबद्ध खेड़े होकर ‘नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे’ प्रार्थना होती थी कुछ देरी बाद ही ध्वज मिलने का नियम था।
इस प्रकार सम्पूर्ण भारत में फैल चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असम के गुवाहाटी नगर में स्थापना हुयी। उसके बाद जो प्रचारक आये अधिकांश महाराष्ट्रीयन (मराठे) ही थे। सबसे पहले प्रचारक गुवाहाटी आये थे माननीय दादाराव परमार्थ जिन्हें हम मान से दादाजी कहते थे। जैसे पूज्य मूलकरजी, पूज्य श्री कृष्ण परांजपे, पूज्य सहश्रभोजनेजी, पूज्य श्री कान्त जोशी, श्री दत्तात्रेय बन्दिष्ठेजी, ठाकुर रामसिंहजी, मधुकरजी लिमये और कृष्ण भगवन्त मतलगजी तथा अनेकों के नाम अब याद नहीं आते। उसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया है-सम्पूर्ण भारत को राष्ट्रीय भावना-‘‘महामंगले ‘‘पूर्वोदय’’ हुआ है-राष्ट्रीय एकता से ही भारत परम वैभव को प्राप्त हो सकता है यही विचार मैंने हमारे स्थानीय युवा संगठनों के नेताओं से समय समय पर बांटे हैं कि महाराष्ट्र के ही डॉ. हेडगेवार ने जातिवाद से ऊपर उठकर देश में राष्ट्रवाद की कल्पना की थी। हम बृहत्तर असम को राष्ट्रवाद के द्वारा ही असम की भाषिक जनगोष्ठियों को एक सूत्र में पिरो सकते हैं आदि आदि बातों के बीच में ही इन दिनों फिर जातिवाद के नाम पर ही उसी महाराष्ट्र की मुम्बई में जिसे भारत की आर्थिक तथा सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है-हम भारतवासियों को मुम्बई पर गर्व होता है। परन्तु आज वहाँ जो कुछ हो रहा है-वह हमारे पूर्वपुरूष महान देशभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, माननीय माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरूजी) के किये कराये पर कहीं पानी न फेर दे यही डर सता रहा है।
जहां एक ओर महाराष्ट्र के महान राष्ट्र सेवकों ने राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर अखण्ड भारत की कल्पना की थी वहां आज क्या वहीं वीर मराठे भाषा के आधार पर भारत राष्ट्र को तोड़ने का कार्य करेंगे। मैं आजकल यही सोचता रहता हूँ कि क्या मेरे मराठों के बारे में मेरी अब तक की सोच गलत थी।

3 टिप्‍पणियां:

  1. गोयनका जी का विचारोत्तेजक लेख डाल कर बहुत अच्छा किया । ठाकरे परिवार और शिवसेना की घटिया सोच और कार्रवाइयों की जितनी निंदा की जाए कम है। इन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए।

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  2. बहुत उत्तम और खरा-खरा लिखा है आपने बधाई हो…

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  3. thik loikha gaya hai.par samay ke anusar isme badlav jaruri hai

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