मारवाड़ी सम्मेलन की स्थापना सन् 1935 में हुई थी। यद्यपि समाज के विभिन्न वर्गो के, जैसे-अग्रवाल, माहेश्वरी, ओसवाल, खण्डेवाल, विजयवर्गीय, ब्राह्मण, राजपूत-आदि के अपने बड़े या छोटे संगठन थे, जो प्रधानतः व्यापारिक एवं रुढ़िगत सामाजिक हितों की सुरक्षा के लिए सचेष्ट रहते थे, लेकिन दूसरी ओर समाज में ऐसे युवकों का प्रादुर्भाव होना प्रारम्भ हो गया था जो रुढ़िगत मान्यताओं को समाज के विकास के लिए हानिकारक मानते थे। अतः इनमें से कुछ संस्थाओं में ऐसे दल भी बन गये थे जो सुधारक की संज्ञा से परिचित होने लगे थे जबकि बाकी सबको सनातनी दल का अनुयायी कहा जाता था।
स्व.ईश्वरदास जालान, सम्मेलन के प्राण-पुरुष
बाद में जब देश में प्रगतिशीलता की हवा बहने लगी तो उनमें संघर्ष भी होने लगे, याने सनातनी दल और सुधारक दल दोनों में तीव्र संघर्ष होने लगा था। पर यह मानना होगा कि सनातनी दल का ही सभी सभाओं और संगठनों में अधिक महत्व था। बूढ़े और बुजुर्ग लोग सभी संस्थाओं पर हावी थे और वे हर तरह से जातियों की अग्र गति में बाधक थे। कलकत्ता उस समय भी सारे मारवाड़ी समाज की एक तरह से राजधानी ही था। यहाँ का मारवाड़ी एसोसिएशन मारवाड़ी समाज के हितों की रक्षा करनेवाली बड़ी संस्था थी। किसी जमाने में उसको अंग्रेजी सरकार का सम्भल भी प्राप्त था, जिसका उदाहरण था कि केन्द्रीय विधानसभा में एक प्रतिनिधि भेजने का उसे अधिकार था। जो लोग आज की राजनैतिक इकाइयों- राजस्थान और हरियाणा आदि से यहां आये और व्यापार- उद्योग में उन्नति की वे ही इन एसोसिएशनों आदि के सर्वेसर्वा थे। जो लोग इनसे बहुत वर्षों पहले यहाँ आकर बस गये थे, खास तौर से अजीमगंज और जियागंज में, वे एक प्रकार से न पूरे मारवाड़ी थे और न पूरे बंगाली। उनकी भाषा राजस्थानी होते हुए भी बंगला से बहुत प्रभावित थी।
समाज से बहिष्कृतः
मारवाड़ी समाज में सामाजिक विभेदों की शुरुआत सबसे पहले उस समय हुई, जब समाज के पढ़े-लिखे दो युवक-इन्द्रचन्दजी दुधोड़िया और इन्द्रचन्दजी नाहटा- विलायत यात्रा से 1890 में वापस आये। सनातनी दल ने उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया और उन्हें वापस विलायत लौटना पड़ा। उस समय से पढ़े-लिखे नवयुवकों में जो खलबली मची उसने धीरे-धीरे समाज सुधार का बीज बोया।
सन् 1901 में श्री विशुद्धानन्द सरस्वती विद्यालय के शिलान्यास के समय श्री कालीप्रसादजी खेतान को विलायत भेजने की घोषणा का स्वागत तो हुआ, लेकिन रसोइयाँ को अपने साथ ले जाने के उपरान्त भी जब वे कलकत्ता आए, तो उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया गया और उन्हें एक प्रकार के प्रायश्चित की पद्धति से गुजरना पड़ा। इस घटना ने भी युवकों की सोचने की प्रक्रिया को अधिक तीव्र किया।
धीरे-धीरे सनातनी और सुधारक दलों का मत-पार्थक्य युवकों के अन्य सुधारवादी कदमों को लेकर उभरता रहा। सन् 1926 में नागरमलजी लिल्हा द्वारा किया गया, विधवा-विवाह एवं रामेश्वरजी बिड़ला द्वारा अपने से नीची खांप में किया गया विवाह, इस विभेद को एक बड़े रुप में उभार कर लाया। परिणाम स्वरुप जमुनालालजी बजाज द्वारा स्थापित की गयी अखिल भारतीय अग्रवाल महासभा का अधिवेशन जब कलकत्ता में सन् 1926 में केशरदेव जी नेवटिया के सभापतित्व में हुआ तो नागरमलजी लिल्हा के विधवा-विवाह को लेकर उस अधिवेशन में भयंकर दल-दल फैला और समाज के 12 व्यक्तियों को समाज से बहिष्कृत किया गया।
वोट का अधिकार:
इसी बीच महात्मा गाँधी के आन्दोलन के फलस्वरुप सन् 1935 का भारत विधेयक आया। उसके सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार ने जो ह्नाइट पेपर प्रकाशित किया था उसमें, जैसा कि स्व0 ईश्वरदास जालान ने लिखा- ‘‘नवीन विधान की रुप-रेखा में ऐसा संकेत किया गया था, जो देशी राज्यों की प्रजा है उसे ब्रिटीश राज्य की प्रजा के नागरिक अधिकार नहीं दिये जायेंगे। जब मैंने उसे पढ़ा तो मुझे यह आशंका हुई कि मारवाड़ी समाज के व्यक्ति जो विभिन्न प्रदेशों में बसे हुए हैं उन्हें देशी राज्यों की प्रजा मानकर यदि नागरिक अधिकार नहीं प्राप्त हुए तो ये देश भर में विदेशियों की तरह समझे जायेंगे। ऐसा होने से न तो उनको वोट का अधिकार होगा और न कोई नागरिक अधिकार। ऐसी अवस्था में मारवाड़ी समाज की अपार क्षति होगी-मन में ऐसी आशंका जागृत हुई कि यदि यह प्रान्तीयता का विष देश में फैल गया तो मारवाड़ी समाज की अवस्था और भी नाजुक हो जायेगी। मैंने इसके सम्बन्ध में स्व0 कालीप्रसाद खेतान से बात की और वे मेरी इस बात से सहमत हुए कि इसका संशोधन आवश्यक है।’’
इसी बीच ब्रिटिश पार्लियामेंण्ट ने एक कमेटी बनाई थी, जिसमें नये संविधान के संबंध में लोगों से विचार-विमर्श किया जा रहा था। हमलोगों ने ऐसा विचार किया कि इस कमेटी के समक्ष अपनी ओर से भी किसी व्यक्ति को भेजना चाहिए। मारवाड़ी एसोसिएशन इस बात के लिए राजी नहीं हुआ, क्योंकि वे लोग विलायत-यात्रा के विरोधी थे। अन्त में हमलोगों ने मारवाड़ी ट्रेड एसोसिएशन की ओर से ब्रिटिश सरकार को पत्र दिया कि वह हम लोगों के प्रतिनिधि को विलायत आने की अनुमति दे और हमलोगों की जो माँग है उसे रखने का मौका दे। ब्रिटिश सरकार ने अनुमति दे दी, परन्तु कोई ऐसा योग्य व्यक्ति नहीं प्राप्त हो सका, जिसे वहाँ भेजा जाये। हम लोग चाहते थे कि स्व0 देवी प्रसाद खेतान इसके लिए उपयुक्त होंगे। परंतु इण्डियन चेम्बर ऑफ कामर्स ने इस कमेटी का बायकाट कर रखा था, इसलिए उनका वहाँ जाना संभव नहीं था। अन्त में मैं और श्री रामदेव जी चोखानी बम्बई गये और सर मन्नू भाई मेहता, जो बीकानेर के दीवान थे, उनसे मिले और उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया और कहा कि वे इस काम को अपने हाथों में ले परन्तु उनकी बातों से हमलोगों को कोई आशाजनक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। फिर हम लोग पं0 मदनमोहन जी मालवीय से मिले। उन्होंने भी ह्नाइट पेपर को पढ़ कर उचित समझा कि इस दिशा में आवश्यक कार्यवाही की जायें। कलकत्ता वापस जाकर हमलोगों ने सर एन.एम. सरकार, जो उस समय के सुप्रसिद्ध बैरिस्टर थे और जो इस काम के लिए विलायत जाने वाले थे, उनसे मिले और उनसे अनुरोध किया कि वे इस विषय को अपने हाथों में ले और ब्रिटिश सरकार से इसे स्वीकृत कराने का प्रयत्न करें। सौभाग्यवश वे राजी हो गये। उन्होंने विलायत जाकर भारत के सेक्रेटरी आफ स्टेट से बातें की और सेक्रेटरी महोदय इस आवश्यक सुधार के लिये राजी हो गये और संशोधन करने का प्रस्ताव करते समय बोले मारवाड़ी समाज की कठिनाइयों को दूर करने के लिए यह संशोधन किया जा रहा है। परन्तु संशोधन करते समय उन्होंने यह अधिकार प्रान्तीय सरकारों को दे दिया। जब यह कानून बन गया तब तक अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन की स्थापना हो चुकी थी। उसने यह प्रयत्न किया कि भारतवर्ष की जो प्रान्तीय सरकारें हैं वे इस अधिकार को प्रदान करें। केवल एक-दो राज्यों में कुछ असुविधा हुई और उसे सुधारने के लिए सेठ जमुनालाल जी बजाज के मार्फत सम्मेलन ने कांग्रेस द्वारा प्रयत्न किया। कांग्रेस की वर्किंग कमिटी ने इसे स्वीकार किया और अन्त में सभी प्रदेशों को यह अधिकार प्राप्त हो गया।
प्रथम अधिवेशनः
सन् 1935 में अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का जन्म हुआ। इस सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन का सनातनीदल के प्रमुख नेता स्व. रामदेव जी चोखानी ने सभापतित्व किया। सम्मेलन ने मारवाड़ी शब्द के अन्तर्गत आनेवाली सभी जातियों के व्यक्ति इसमें सम्मिलित होकर काम कर सकें। सम्मेलन का पहला अधिवेशन दिसम्बर सन् 1935 में कलकत्ता के मोहम्मद अली पार्क में सम्पन्न हुआ और सम्मेलन का कार्यालय मारवाड़ी छात्र निवास के भवन, 150, चित्तरंजन एवेन्यू, कलकत्ता-7 में रखा गया। उस सम्मेलन के प्रथम सभापित की हैसियत से स्व0 रायबहादुर रामदेव जी चोखानी ने जो भाषण किया उसके निम्न अंश इस सम्मेलन की भूमिका और मारवाड़ी समाज के बारे में ध्यान देने लायक हैं-
‘‘जिस महान एवं पवित्र उद्देश्य को लेकर हम लोग आज यहाँ उपस्थित हुए हैं वह उद्देश्य है सम्पूर्ण मारवाड़ी समाज का सामूहिक संगठन, ऐसा संगठन जो जाति में नवजीवन का संचार करनेवाला हो, उसके कार्यकर्त्ताओं में उल्लास, संजीवता एवं कर्मोद्यम का भाव भरनेवाला हो और जिसमें समाज की विभिन्न शाखाएँ सम्बद्ध हों, अपने जातीय हित और उससे भी वृहत्तर सम्पूर्ण देश के स्वार्थ सम्बन्ध रखनेवाले समस्त प्रश्नों पर विचार करें और अपना कर्तव्य स्थिर करें। अभी तक समाज की विभिन्न शाखाओं का जो संगठन हुआ है, श्रृंखलित न होने के कारण उसके द्वारा हम देश के सार्वजनिक जीवन पर अपना प्रभाव डालने तथा उसके सभी क्षेत्रों में अन्य समाजों के साथ अपनी सत्ता स्थापित करने में समर्थ नहीं हुए हैं। इस प्रकार के संगठन की आवश्यकता जो हम इस समय विशेष रुप से अनुभव कर रहे हैं इसका कारण है देश की परिस्थिति में परिवर्तन। आज समाज के वृद्ध एवं युवक दल में, सनातनी और सुधारक में जो इतना पार्थक्य दिख पड़ा है और दोनों एक दूसरे को कोसों दूर समझते हैं, उसका कारण भ्रम ही है। यह भ्रम दोनों का ही एक समान शत्रु है।’’
उस समय सम्मेलन के प्रथम सभापति जहाँ रामदेव जी चोखानी थे वहीं प्रधानमंत्री भूरामल जी अग्रवाल थे।
इस सम्मेलन में जो प्रस्ताव पास किये गये उनमें सबसे महत्व का प्रस्ताव यह था-यह सम्मेलन मारवाड़ी भाइयों से अनुरोध करता है कि वे नागरिक एवं राजनीतिक समस्त देशोन्नति के कार्य में दिलचस्पी लें और उनके चुनाव में सम्मिलित होकर तथा उनमें प्रवेश करके देशवासियों की सेवा करने का सुयोग प्राप्त करें और जो दूसरी महत्वपूर्ण बात इस सम्मेलन ने अपने प्रस्ताव में कही थी वह यह कि सम्मेलन भिन्न-भिन्न प्रान्तों में बसनेवाले मारवाड़ी बन्धुओं से अनुरोध करता है कि वे जिस प्रान्त के निवासी हों वहाँ के अन्य समुदायों के साथ मिलकर वहाँ के सार्वजनिक कार्यों में अधिकाधिक भाग लें जिससे उनके पारस्परिक प्रेम और सद्भावना को दृढ़ता प्राप्त हो।
इस प्रथम सम्मेलन में असम, बिहार, बंगाल, राजपूताना, पंजाब, संयुक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त और मद्रास सभी स्थानों के प्रतिनिधि थे। इस सम्मेलन की सफलता चारों तरफ गूँज उठी।
सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन:
सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन कलकत्ते में ही करने के लिये तय हुआ जिसके सभापति संयुक्त प्रान्त (कानपुर) के प्रसिद्ध उद्योगपति स्व.पद्मपत सिंघानिया हुए और स्वागताध्यक्ष स्व.मंगतूराम जयपुरिया हुए। यह दूसरा अधिवेशन 13-14-15 मई 1938 को कलकत्ते के मोहम्मद अली पार्क में हुआ।
इस सम्मेलन में श्री पद्मपत सिंघानिया ने जो भाषण किया वह कई दृष्टियों से उत्पन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा-‘‘ब्राह्मण, ओसवाल, माहेश्वरी, अग्रवाल, खण्डेलवाल इत्यादि सबको उपस्थित पाकर और उनके चेहरे पर अंकित देश तथा समाज के उद्धार की लगन देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है वह केवल अनुभव की ही वस्तु है। उन्होंने सन् 1938 में एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहीं जो वर्षों तक सम्मेलन के किसी सभापति ने नहीं कही। उन्होंने कहा- यहाँ पर मेरी इच्छा सामाजिक विषय पर विचार करने की थी। समाज की समस्या वर्षों से हमारे सामने है और हम उस पर विचार कर रहे हैं। किन्तु यह विषय इतना विवादास्पद है कि हमने आपस में कहीं तर्क-वितर्क किया भी हो, पर खास ध्यान आकर्षित करना उचित नहीं प्रतीत होता। मैं उसे भविष्य के लिये छोड़ देता हूँ किन्तु यह चेतावनी दे देना भी जरुरी समझता हूँ कि हम चाहें अथवा नहीं, सामाजिक समस्या का निकट भविष्य में सामना करना ही पड़ेगा। आज नहीं तो कल हमको एकत्र होकर अपने समाज के सम्पूर्ण संगठन की योजना और सामाजिक पहेलियों का निदान करना ही पड़ेगा।’’
स्व0 ईश्वरदास जालान ने जो बीज लगाया था वह योग्य विभूतियों की छत्र-छाया में उनकी तत्परता और त्याग से पल्लवित हो बढ़ने लगा और देश के सभी प्रान्तों के मारवाड़ी बन्धुओं का सहयोग पूर्णरुप से इस सम्मेलन को मिलने लगा। जगह-जगह पर प्रचारकों को भेजकर सम्मेलन की आवश्यकता और महत्ता बताने का प्रयत्न किया गया।
सम्मेलन का तीसरा अधिवेशन:
सम्मेलन का तीसरा अधिवेशन संयुक्त प्रान्त की मुख्य व्यापारिक नगरी कानपुर में हुआ जिसके स्वागताध्यक्ष स्व0 पद्मपत सिंघानिया के छोटे भाई स्व0 लक्ष्मीपत सिंघानिया बने और उस महाधिवेशन के सभापति बद्रीदासजी गोयनका हुए। 15, 16, और 17 मार्च 1940 को सर बद्रीदासजी गोयनका के सभापतित्व में यह तीसरा अधिवेशन हुआ। उसके बारे में सम्मेलन की स्वागत समिति के कार्य विवरण में लिखा है कि कानपुर के मारवाड़ी भाइयों का उत्साह अपने को कार्यरुप में परिणित कर चुका था......। तोरण पताका वाद्य-यन्त्र नगर के मार्गो की शोभा बढ़ा रहे थे....। जब सर बद्रीदास जी गोयनका कानपुर स्टेशन पर पहुँचे तो कानपुर का स्टेशन मारवाड़ी बन्धुओं से भरा हुआ था। केसरिया पगड़ियाँ बाँधे सबके मुँह दमक रहे थे। अपूर्व उत्साह लहर ले रहा था। एक बड़े जुलूस में, जो आधा मील लम्बा होगा, सभापतिजी को फूलबाग ले जाय गया जहां अधिवेशन का पण्डाल था। उसकी रुपरेखा एक बड़े दुर्ग के सदृश दिखाई देती थी।
अधिवेशन दिन के तीन बजे होनेवाला था, लेकिन उसी वक्त दुर्भाग्य से पण्डाल में आग लग गई और सारा पण्डाल राख का ढेर हो गया था। सबके मुँह पर हवाइयां उड़ रही थीं पर उसी समय स्व0 पद्मपत के इस कथन ने कि सम्मेलन इसी जगह फौरन होगा, सबकी नसों में जोश भर दिया। परीक्षा की वह घड़ी थी, पर सिंघानिया बन्धुओं ने जिस उद्यम और तत्परता से काम किया उसी का परिणाम था कि सम्मेलन का अधिवेशन उसी स्थान पर 7 बजे शाम से प्रारम्भ हो गया।
सर बद्रीदासजी गोयनका ने अपने अध्यक्षीय भाषण में और बातों के साथ यह भी कहा-‘‘एक खास विषय की ओर आपका ध्यान आकर्षित किये बिना में नहीं रह सकता और वह विषय है फिजूल-खर्ची जो आए दिन सामाजिक त्यौहारों और उत्सवों पर देखने में आती है। मैं समाज के सभी लोगों से यह अनुरोध करता हूँ कि ऐसे सामाजिक अवसर पर वे अपने खर्च को उचित सीमा के बाहर न जाने दें। मेरा यह अनुरोध केवल उन्हीं से नहीं है जिनके पास धन का अभाव है वरन में उन लोगों से भी अनुरोध करता हूँ जिनके पास प्रचुर धन है, क्योंकि यह मानव स्वभाव है कि दूसरी श्रेणी की देखादेखी पहली श्रेणी के लोग अपनी सीमित आर्थिक अवस्था के बावजूद दिखावे और आडम्बर में उनकी नकल करने को आतुर दिखाई देते है।’’
सम्मेलन का चतुर्थ अधिवेशन:
इसके बाद सन् 1941 में बम्बई के प्रसिद्ध उद्योगपति सेठ रामदेव जी पोद्दार के सभापतित्व में बिहार के एक प्रमुख व्यवसायी नगर भागलपुर में सम्मेलन का चतुर्थ अधिवेशन हुआ। भागलपुर (बिहार) में कलकत्ते को छोड़कर जो अधिवेशन हुआ जिसका बिहार मारवाड़ी सम्मेलन के इतिहास में विशेष स्थान है।
स्व0 रायबहादूर बंशीधर ढांढनिया भागलपुर में चतुर्थ महाधिवेशन के स्वागताध्यक्ष बने और उनके संरक्षण में सारे कार्य हुए। इस सम्मेलन के सभापति होकर बम्बई से सेठ रामदेवजी आनन्दीलाल जी पोद्दार आए थे। उन्होंने बहुत कारगर भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में राष्ट्रीयता पर जोर देते हुए कहा-‘‘हमारा राजनैतिक स्वार्थ और भारत का राजनैतिक स्वार्थ एक है। मैं जातियता का पक्षपाती नहीं हूँ इसलिए अपनी जाति के लिए विशेष अधिकार प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं रखता। जिस कार्य में भारत का हित है उसी कार्य में भारत की प्रत्येक जाति का हित है। मेंरे कहने का मतलब यह है अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का आदर्श राष्ट्रीय है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि जिन देशी रियासतों के हम निवासी या प्रवासी है उनकी शासन प्रणाली में परिवर्तन करना तथा प्रतिनिधित्व प्राप्त करना और उस प्रणाली को विधानयुक्त बनाना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। उन्होंने जोर देकर कहा-हमारे समाज में गमी, विवाह और छोटे-छोटे प्रसंगों में धन का अपव्यय करने की प्रक्रिया है इससे सभी भाइयों को कष्ट तथा धन राशि और समय नष्ट होता है। अब युग परिवर्तन का आ गया है.... इसलिये इन अवसरों पर फिजूल खर्च नहीं करना चाहिए। जनता का ध्यान इधर जा रहा है। आशा है यह प्रक्रिया भी शीघ्र ही बन्द हो जायेगी।
इसी समय गाँधी जी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता आन्दोलन की आखिरी लड़ाई- करो या मरो आन्दोलन अपने शिखर पर पहुँच गया था। उस आन्दोलन के बारे में 9 अगस्त 1942 को कांग्रेस की अखिल भारतीय समिति ने जो प्रस्ताव पारित किया उससे उत्साहित होकर देश के विभिन्न भागों में हजारों-लाखों लोग गिरफ्तार होकर जेल चले गये, उसमें मारवाड़ी सम्मेलन के भी सैकड़ों कार्यकर्त्ता विभिन्न प्रान्तों में जगह-जगह गिरफ्तार हो गये और समाज को बड़ा गौरव मिला। गिरफ्तार होने वालों में स्व.राम मनोहर लोहिया, स्व.बृजलाल बियाणी, स्व.सेठ गोविन्ददास, स्व. बसन्तलाल मुरारका, स्व.सीताराम सेकसरिया, स्व. मूलचन्द अग्रवाल, स्व. भागीरथ कानोड़िया, स्व. विजय सिंह नाहर, स्व. भँवरमल सिंघी और श्री सिद्धराज ढड्ढ़ा आदि थे।
सम्मेलन का पांचवां अधिवेशन:
जब ये कार्यकर्त्ता आन्दोलन में लगे हुए थे और जेल यातना सह रहे थे उस समय मई 1943 में दिल्ली में सम्मेलन का पांचवां अधिवेशन हुआ जिसके सभापति बीकानेर के लब्धप्रपिष्ठ स्व0 राम गोपाल मोहता हुए।
इस अधिवेशन के सभापति स्व0 रामगोपाल मोहता ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा-‘‘अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के मंच पर हम लोग सभी जाति, उपजाति एवम् फिरकों के राजस्थान निवासी मारवाड़ी कहलाने वाले लोग बिना किसी भेदभाव के एकत्र होकर सामूहिक रुप से अपना संगठन करके, अपनी सर्वागीण उन्नति करते हुए, अपने उचित स्वत्वों और अधिकारों की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध हो रहे है। पृथक-पृथक फिरकों के जातीय समाजों के सम्मेलनों का जमाना अब खत्म हो चुका हैं। उन्होंने आगे कहा कि देश में प्रान्तीयता के भावों का संघर्ष बहुत ही सोचनीय रुप धारण कर रहा हैं।’’
सम्मेलन का छठवां अधिवेशन:
सम्मेलन का छठवां अधिवेशन बड़े समारोहपूर्वक बम्बई में सुप्रसिद्ध राजनेता स्व0 बृजलाल बियाणी के सभापतित्व में हुआ। इस अधिवेशन में पहले पहल सम्मेलन ने अपने उद्देश्यों में संशोधन किया और समाज सुधार के प्रस्ताव भी लिये। उन समाज सुधारों के प्रस्तावों में पर्दा प्रथा, निवारक प्रस्ताव सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।
इस अधिवेशन की स्वागत समिति के स्वागताध्यक्ष स्व.गजाधर सोमानी हुए।
30 अप्रैल सन् 1947 को नागपुर मेल से सम्मेलन के छठें अधिवेशन के सभापति स्व0 बृजलाल बियाणी बम्बई के बोरी बन्दर स्टेशन पधारे। उनके आते ही सारा वायुमण्डल राष्ट्रीय जय जयकारों से गूँज उठा। स्व0 बियाणी के सभापतित्व में जो अधिवेशन हुआ उसका उद्घाटन करते हुये बम्बई के तत्कालीन प्रधानमंत्री खेर साहब ने कहा-
‘‘देश में कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ मारवाड़ी समाज के लोग न रहते हो। अब तक हमें मारवाड़ी शब्द से केवल व्यापार करने वाली जाति का ही बोध होता था, किन्तु आपने जो विस्तृत एवं स्थायी अर्थ लगाया है वह प्रशासनीय है। अब आपलोग महिलाओं की उन्नति और अछूतोद्धार सम्बन्धी कार्यों को अपनाएँ।’’
बियाणीजी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जोर देकर कहा-‘‘मारवाड़ी भाई जहाँ रहते है वहाँ की जनता से समरस हो जायँ, वहीं अपनी जन्म-भूमि राजस्थान को सम्पूर्ण विस्मरण न करें।
उन्होंने आह्नान किया-समाज की प्रगति और विकास पर भी हमें ध्यान देना चाहिए। हमारा समाज प्राचीनता के बोझ से अभी तक दबा हुआ है....। मारवाड़ी सम्मेलन आज तक सामाजिक सुधार के क्षेत्र में कुछ अंश तक अलिप्त रहता आया है, पर अब समय आ गया है कि हमारा यह सम्मेलन अपनी इस अलिप्तता या उपेक्षा को त्याग कर सामाजिक सुधार के काम में तत्परता से लग जाय।’’
वर्तमान समय में सारे सुधारों में पर्दा निवारण को में प्रथम स्थान देता हूँ। पर्दे के कारण समाज की स्त्रियों का स्थान हीन है, उनकी प्रगति हो नहीं सकती और स्त्रियों की प्रगति के अभाव में सारे समाज की प्रगति कुण्ठित है।
स्त्रियों के लिए पर्दा हटाना बहुत आवश्यक है। मारवाड़ी समाज के सारे सुधारकों को इस कार्य में सम्पूर्ण शक्ति लगा देनी चाहिये। मारवाड़ी समाज के हर व्यक्ति का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने यहाँ की स्त्रियों के पर्दा निर्वारण कार्य में इसी क्षण जुट जाये। समाज के युवकों पर इस समय बहुत बड़ा दायित्व है। समाज के स्वरुप को बदलने का भार उस पर है और भावी समाज का उनको निर्माण करना है। इस अधिवेशन में स्व0 रामेश्वरजी केजड़ीवाल प्रधानमंत्री चुने गये, लेकिन उनका आकस्मिक निधन हो गया। अतः सन् 1950 में श्री नन्दकिशोर जालान को सम्मेलन का प्रधान मंत्री चुना गया।
सम्मेलन का सप्तम अधिवेशन:
सम्मेलन का सप्तम महाधिवेशन भी कलकत्ता के मोहम्मद अली पार्क में 31 दिसम्बर 1953 से 2 जनवरी 1954 तक हुआ। इसके स्वागताध्यक्ष सम्मेलन के महाप्राण स्व0 ईश्वरदास जालान थे। जब स्व0 सेठ गोविन्द दास, एम0पी0 30 दिसम्बर 1953 को हावड़ा स्टेशन पर आये तो उनके स्वागतार्थ कलकत्ते की कई सार्वजनिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता और कलकत्ते के अन्य विशिष्ट और प्रभावशाली व्यक्ति उपस्थित थे।
सामाजिक क्रान्ति जिन्दाबाद
इस अवसर पर जो मारवाड़ी महिला सम्मेलन हुआ उसकी सभानेतृत्व स्व0 इन्दुमती गोयनका ने कहा हमें खुशी है कि हमारे समाज में भी अब जागृति के चिन्ह उत्पन्न हो रहे हैं। आज घोर से घोर अशिक्षित माताएँ भी अपनी बच्चियों को पढ़ाना आवश्यक मानने लगी हैं।
अपने भाषण के अन्त में स्व0 इन्दुमती गोयनका (जो मारवाडी़ समाज की कलकत्ता में सत्याग्रह करके गिरफ्तार होनेवाली पहली महिला थीं।) ने कहा-सामाजिक क्रान्ति जिन्दाबाद।
सम्मेलन का अष्टम रजत जयन्ती महाधिवेशन:
सन् 1961 के दिसम्बर में जब सम्मेलन का रजत जयन्ती महाधिवेशन कलकत्ता के मोहम्मद अली पार्क के पण्डाल में हुआ और उसमें पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्य मंत्री स्व.विधानचन्द्र राय सम्मेलन का उद्घाटन करने आये तो सारा पण्डाल एक करतल ध्वनि से गूँज उठा। उस सम्मेलन के मुख्य अतिथि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. विनोदानन्द झा थे और महाधिवेशन के स्वागताध्यक्ष थे स्व. सेठ साहू शान्ति प्रसाद जैन।
अधिवेशन के प्रधान अतिथि बिहार के मुख्य मंत्री स्व0 विनोदानन्द झा ने अपने भाषण में कहा-मैंने देखा है मारवाड़ी समाज समय और स्थिति के अनुसार अपने जीवन में सुधार और परिवर्तन करने में किसी से पीछे नहीं हैं।
इस महाअधिवेशन के स्वागताध्यक्ष स्व0 साहू शान्तिप्रसाद जैन के भाषण के कुछ महत्वपूर्ण अंश अद्भुत कर रहे हैं-‘‘मारवाड़ी सम्मेलन समाज के सभी क्षेत्रों में व्यक्ति की चेतना को प्रबुद्ध और जागृत करता हैं, हमेशा करता रहेगा। सम्मेलन ने समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में अनेक कार्यक्रम अपनाये हैं। सम्मेलन ने विलायत यात्रा को प्रोत्साहित करना अपने कार्यक्रम का अंग मान था। वृद्ध विवाह, बाल विवाह, अनमेल विवाह, छुआछूत आदि प्रश्नों को लेकर सम्मेलन ने संघर्ष किया। इनमें से अधिकांश प्रश्न अब नहीं रहे हैं। कई वर्षों से सम्मेलन पर्दा प्रथा के विरुद्ध भारतव्यापी आन्दोलन कर रहा है और इसमें पर्याप्त सफलता भी पाई है। दहेज प्रथा के विरुद्ध में भी सम्मेलन ने समाज की चेतना जागृत की है, किन्तु इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी हैं। देश में शिक्षा की द्रुत गति से उन्नति हो रही है, परन्तु बहुत से ऐसे विद्यार्थी हंै जो क्षमता रहते हुए भी धनाभाव के कारण पढ़ नहीं सकते। सम्मेलन इस दिशा में भी सचेष्ट है। ऐसी प्रवृत्तियां अधिकाधिक बढ़ें, इसका प्रयास होना चाहिए।’’
इस अधिवेशन के अध्यक्ष स्व0 गजाधर सोमानी ने कहा-विवाहों में अपव्यय की भत्र्सना करते हुए उन्होंने कहा कि विवाहों में आज भी हम अपने वैभव का इतना प्रदर्शन करते हैं कि दूसरों की दृष्टि में हम खटकने लगते हैं। हमें उतना ही प्रदर्शन करना उचित है जो दूसरों के लिए सिरदर्द न बने।
रजत जयन्ती अधिवेशन में छात्रावास बनाने की जो योजना स्वीकृत की गयी थी और जिसके लिए चंदा लिया गया था, उस योजना के अनुरुप 16 कट्ठा जमीन सन् 1964 में खरीदी गई। लेकिन उसके बाद काम कुछ ढीला पड़ गया और सन् 1965 से सन् 1973 के बीच अगले अधिवेशन को छोड़कर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं हो सका।
सम्मेलन का नौवाँ अधिवेशन:
अक्टूबर 1966, महाराष्ट्र के पूना में हुआ, जिसके अध्यक्ष स्व0 रामेश्वर टाँटिया थे और स्वागताध्यक्ष श्री नन्दलाल पित्ती।
सम्मेलन का दसवां अधिवेशन:
30 दिसम्बर 1973 को रांची नगर में सम्मेलन का दसवां अधिवेशन प्रारम्भ हुआ, जिसके सभापति थे स्व. भंवरमल सिंघी। सम्मेलन का यह दसवां महाधिवेशन एक और दृष्टि से सम्मेलन के इतिहास में अद्वितीय था- वह यह कि मारवाड़ी सम्मेलन के महाधिवेशन के साथ ही बिहार प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन का भी अधिवेशन हुआ था।
इस सत्र में विभागीय उप-समितियाँ बनी। उनमें समाज सुधार समिति के श्री नंदलाल सुरेका, शिक्षा के श्री इन्द्रचन्द संचेती, राजस्थानी संस्कृति-साहित्य-कला के श्री रतन शाह, संगोष्ठी के श्री नरनारायण हरलालका, अर्थ के श्री दीपचन्द नाहटा, गो-सम्बर्धन के श्री बजरंगलाल लाठ, व्यापार आचारसंहिता के श्री विजय सिंह कोठारी, कानून एवं आयकर के श्री रमेश चन्द्र गुप्ता, सदस्यता अभियान के श्री मोहनलाल चोखानी एवं श्री नारायण प्रसाद बुधिया एवं पूर्वांचल के श्री जगन्नाथ प्रसाद जालान मंत्री चुने गये एवं समाज विकास के संपादन का भार श्री नन्दकिशोर जालान को दिया गया।
विवाहों में आशीर्वाद के समय नाश्ता कराना पिछले एक-दो वर्षों से आरम्भ हुआ था एवं पंडाल आदि में फिजूलखर्ची बढ़ रही थी। इसलिए इनके विरुद्ध अभियान चलाने का कार्यक्रम लिया गया। लगातार जनसभायें की गई और 24 जून 1974 से जनवरी 1975 तक बीसियों स्थानों पर विवाह-शादियों सम्बन्धी नियमावली हजारों की संख्या में वितरित की गई। इस आन्दोलन एवं प्रदर्शन का तत्काल असर हुआ और आशीर्वाद के समय 95 प्रतिशत शादियों में केवल पेय पदार्थ ही रखा जाने लगा और पंडाल एवं अन्य फिजूलखर्ची में भी काफी कमी आई। कलकत्ते में चलाये गये इस आन्दोलन की प्रतिक्रिया अखबारों में भी प्रभावोत्पादक तरीके से प्रकाशित हूई। अन्य प्रान्तों में भी सम्मेलन के प्रान्तीय अधिकारियों द्वारा दहेज, दिखावा एवं फिजूलखर्ची तथा पर्दा के विरुद्ध सभायें, प्रदर्शन आदि किये गये।
सम्मेलन का 11वाँ अधिवेशन:
सम्मेलन का 11वाँ अधिवेशन हैदराबाद में सन् 1976 में सम्पन्न हुआ। सिंघीजी के कार्यकाल की उपलब्धियों को ध्यान में रखकर लोगों ने श्री भंवरमल सिंघी से पुनः सभापति का पद स्वीकार करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
सम्मेलन का द्वादश अधिवेशन:
उद्योग नगरी बम्बई में मार्च 1979 में हुआ जो तीन दिन तक चला। इसके अध्यक्ष संस्कृति और साहित्य के विकास में संलग्न स्व. रामप्रसाद जी पोद्दार को चुना गया। इस अधिवेशन की यह भी विशेषता थी कि खुले अधिवेशन में राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भैरो सिंह शेखावत और महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री श्री शरद पवार उपस्थित थे।
सम्मेलन का त्रयोदश अधिवेशन:
अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का त्रयोदश महाधिवेशन भारतवर्ष की सुप्रसिद्ध नगरी बिहार प्रदेश के जमशेदपुर में मार्च 1982 में सम्पन्न हुआ। इस महाधिवेशन के सभापति पद के लिये ऐसे व्यक्ति का चयन हुआ जो पिछले दो सत्रों में प्रधानमंत्री थे और निवर्तमान सभापति के काल में उपाध्यक्ष थे और सन् 1950 से सन् 1961 सत्र के रजत जयन्ती अधिवेशन तक प्रधानमन्त्री रह चुके थे यानी श्री नन्दकिशोर जालान।
अ. भा. मारवाड़ी महिला सम्मेलन:
23 दिसम्बर सन् 1983 को बिहार प्रदेश की राजधानी पटना नगर में गाँधी मैदान के पार्श्व में एशिया के वृहत्तम सभा कक्षों में से एक कृष्ण मेमोरियल हाल में महिला अधिवेशन प्रारम्भ हुआ जिसमें हमारे समाज की 70 वर्ष की प्रौढ़ महिलाओं से लेकर 15 वर्ष तक की किशोरियों तक ने सम्मिलित होकर नारी-जागरण की उद्घोषणा की। इस अधिवेशन की अध्यक्षा थीं सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखिका श्री मती सुशीला सिंघी। स्वागताध्यक्षा थी श्रीमती सुशीला मोहनका, स्वागतमंत्री श्रीमती पुष्पा चोपड़ा एवं श्रीमती सरोज गुटगुटिया।
अ. भा. मारवाड़ी युवा मंच:
अ0भा0मारवाड़ी सम्मेलन के तत्वावधान में अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन युवा मंच का प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन असम प्रदेश की राजधानी गुवाहटी में 18-20 जनवरी 1985 को सम्पन्न हुआ, जिसका उद्घाटन जोधपुर के महाराजा गजराज सिंह ने किया। इस अधिवेशन के आयोजक थे पूर्वोत्तर प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन, युवा मंच के अध्यक्ष श्री सुरेश कुमार बेड़िया। इस अधिवेशन में गुवाहाटी के श्री प्रमोद्ध सर्राफ राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं श्री अनिल जैना महामंत्री बनाये गये। अधिवेशन के तत्काल बाद ही इसका नाम अ.भा.मारवाड़ी युवा मंच कर दिया गया।
सम्मेलन का चौदहवां अधिवेशन:
चौदहवां अधिवेशन, कानपुर, 15 मार्च 1986, सम्मेलन का 14वां अधिवेशन 15 मार्च 1986 को कानपुर में हुआ। इसके अध्यक्ष बनाये गये श्री हरिशंकर सिंघानिया एवं श्री रतन शाह महामंत्री बने।
सम्मेलन का पंद्रहवां अधिवेशन:
पंद्रहवां अधिवेशन, रांची, 18 फरवरी 1989, 15वां अधिवेशन 18 फरवरी 1989 को रांची में हुआ। स्व. रामकृष्ण सरावगी को इसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया एवं स्व. दुलीचंद अग्रवाल महामंत्री बने।
सम्मेलन का सोहलवां अधिवेशन:
सोहलवां अधिवेशन, दिल्ली, 20 जून 1993, 16वां अधिवेशन 20 जून 1993 को दिल्ली में हुआ। जिसका
अध्यक्ष पुनः श्री नन्दकिशोर जालान को बनाया गया एवं श्री दीपचंद नाहटा मंत्री चुने गये।
सम्मेलन का 17वां अधिवेशन:
सम्मेलन का 17वां राष्ट्रीय अधिवेशन 7-8 जून 1997 को हैदराबाद में सम्पन्न हुआ, जहां श्री नन्दकिशोर जालान पुनः सभापति चुने गए। श्री सीताराम शर्मा महामंत्री निर्वाचित हुए। इस अधिवेशन का उद्घाटन आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री कृष्णकांत ने किया।
सम्मेलन का 18वां अधिवेशन:
अठारहवां अधिवेशन, कानपुर, 1-2 जून 2001, श्री मोहनलाल तुलस्यान सम्मेलन के आगामी अध्यक्ष निर्वाचित हुए एवं कानपुर में 1-2 जून 2001 को आयोजित 18वें अधिवेशन में पदभार ग्रहण किया एवं श्री सीताराम शर्मा पुनः महामंत्री निर्वाचित हुए। कानपुर शहर का सम्मेलन से पुराना रिश्ता है। सम्मेलन के 1938 में निर्वाचित द्वितीय अध्यक्ष सेठ पद्मपत सिंघानिया कानपुर से थे। सम्मेलन का तीसरा अधिवेशन 1940 में कानपुर में ही सम्पन्न हुआ। 1986 में पुनः सम्मेलन का 14वां अधिवेशन कानपुर में हुआ। जहां सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री हरिशंकर सिंघानिया अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 2001 ने एक बार फिर कानपुर में सम्मेलन को राष्ट्रीय अधिवेशन के लिये आमंत्रित किया है। इनके ही कार्यकाल में कोलकाता शहर में सम्मेलन का भवन खरीदा गया।
सम्मेलन का 19वां अधिवेशन:
उन्नीसवां अधिवेशन, मुम्बई, 9-11 जनवरी 2004 को मुम्बई में सम्मेलन का 19वां राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसे राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने सुशोभित किया। इस आयोजन में श्री तुलस्यान अध्यक्ष पुनर्निर्वाचित हुए तथा श्री भानीराम सुरेका महामंत्री निर्वाचित किये गये।
सम्मेलन का 20वां अधिवेशन:
20वां राष्ट्रीय अधिवेशन, 5-6 अगस्त 2006, भुवनेश्वर-अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का 20वां राष्ट्रीय अधिवेशन भुवनेश्वर के जयदेव भवन में एक सादे समारोह के बीच सम्पन्न हुआ क्योंकि उद्घाटन दिवस की पूर्व संध्या को उड़ीसा की पूर्व मुख्यमंत्री नंदिनी सत्पथी के देहावसान के कारण राज्य में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया था।
5 अगस्त को सायं 5.30 बजे उद्घाटन सत्र का शुभारंभ हुआ जिसमें सबसे पहले उड़ीसा की पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं उड़िसा की विशिष्ट लेखिका नन्दिनी सत्पथी की स्मृति में दो मिनट का मौन पालन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी। इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता स्व.रामनिवास मिर्धा मुख्य अतिथि तथा राज्य के कृषि मंत्री श्री देवी प्रसाद मिश्र मुख्य वक्ता के रुप में उपस्थित थे।
तदुपरान्त नव- निर्वाचित सभापति श्री सीताराम शर्मा को तुमुल हर्षध्वनि एवं तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सम्मेलन के आगामी सत्र के लिए निवर्तमान अध्यक्ष श्री मोहनलाल तुलस्यान ने अध्यक्ष पदभार समर्पित किया।
पद्भार ग्रहणोपरान्त अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के 16वें सभापति श्री सीताराम शर्मा ने श्री तुलस्यान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए एवं एक सक्रिय कार्यकर्त्ता के रुप में उनके सहयोग देने की भावना को अपने लिए प्रेरणाप्रद बताते हुए अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में कहा-
‘‘मारवाड़ी सम्मेलन की स्थापना के उपरांत के सात दशकों में, एक नयी राजनैतिक एवं आर्थिक विश्व-व्यवस्था स्थापित हुई हैं। खुली अर्थव्यवस्था एवं वैश्वीकरण ने तमाम मूल्यों, आस्थाओं एवं संकल्पों में आमूल परिवर्तन किया है। आने वाला समय आर्थिक क्षेत्र में और अधिक संघर्षपूर्ण एवं ज्यादा जागरुकता को विवश करेगा।’’
20वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री रामनिवास मिर्धा ने अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए कहा कि अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के इस 20वें राष्ट्रीय अधिवेशन में उपस्थित होकर में गौरवान्वित हूँ।
सम्मेलन का 21वां अधिवेशन:
अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के 21वें राष्ट्रीय अधिवेशन एवं 74वें स्थापना दिवस समारोह का आयोजन तैरापंथ भवन, अध्यात्म साधना केंन्द्र, छत्तरपुर, महरौली, नयी दिल्ली में 20-21 दिसंबर 2008 को हुआ। अधिवेशन का उद्घाटन भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि के रुप में पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री राम निवास मिर्धा उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री नन्दलाल रुँगटा राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद सौंपा गया।
श्री रामअवतार पोद्दार को महामंत्री, श्री अत्माराम सोंथलिया को कोषाध्यक्ष एवं समाज विकास के कार्यकारी संपादन का भार श्री शम्भु चौधरी को दिया गया।
नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री नन्दलाल रुँगटा ने अध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा से पद्भार ग्रहण किया एवं अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री रूँगटा ने कहा कि इस सफर में जहाँ हमने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की वहीं समाजिक कुरीतियों के विरूद्ध सम्मेलन सदा से कार्य करता रहा है और आज भी इस दिशा में अग्रसर है। आपने आगे कहा कि समाज के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों के प्रमुख कारणों में समाज में व्यापक आडम्बर एवं दिखावेपन की प्रवृत्ति है। इस प्रवृति को दूर करने के प्रयास होने चाहिए।’’
बोत चोखी बात है शम्भु जी आपरो ब्लोग जोयो ..... चोखो लागयो........ पण १ कमी है आप राजस्थान रे खातर कै लिख रिया हो बो राजस्थानी भासा माय लिखो.............
जवाब देंहटाएंAdbhut, Anupam, Anukarnneeya . Shambhu Ji aapko baar ha salaam . Bahut kuch samjha hai. Aaj ke is samay mein jab logbaag apnee daphlee baja rahe hain, Rajasthan , waha jee bhasa aur Sanskriti ke prati kitnee chetna avsesh hai . Abhee apnee bhasha aur sanskriti ko bahut door tak le jaane kee aawashyakta hai. Is pristh ko maine surakshit kar liya hai. Sambhawtah main baar baar yaha aata rahunga. Dukh hai ki naye panne nahee jud paaye hain . Kripaya niraash na ho . Apnee lekhnee kee pratibha se yun hee roshnee failaate rahein .
जवाब देंहटाएंYadi sambhaw ho sake to mere email address par chand quotations bhejein jinmein Rajasthan ka gauravmay varnnan ho. Mera niyamit e mail hai vijaykayal@yahoo.co.in.
Bahooooooot hee achcha laga aapke blogs dekh kar . Aapko anekanek SAADHUWAAD.