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रविवार, 21 दिसंबर 2008

वृद्धाश्रम धड़ल्ले से खुलते जा रहे हैं

मौजी रामजी जैन


परिचयः श्री मौजी रामजी जैन, पश्चिम उड़ीसा के सफलतम व्यवसायियों में आपकी गणना की जाती है। युवावस्था से सार्वजनीन गतिविधि में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। उनदिनों वह अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। सन् 1960 से 1970 के अंदर 2 बार कांटाबांजी नगर पालिका के चेयरमैन चुने गये। 1972 में पार्षद निर्वाचित हुए, किन्तु राजनीति में अर्थ की भूमिका देख चेयरमैन पद को अस्वीकार कर दिया। राजनीति में मूल्यबोध व नैतिकता के प्रति सदैव सजग रहे। इसके बाद समाज सेवा की ओर रूख किया। स्थानीय अग्रवाल सभा, गोशाला तथा जैन श्वे.ते. सभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। उड़ीसा प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष, उड़ीसा प्रान्तीय जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के दो कार्यकाल के लिए अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर रहते हुए आपने समाज व धर्मसंघ की अहम् सेवा की है। अंचल के अनेक द्विपाक्षिक व सामाजिक समस्याओं को आपने न्यायालय से बाहर सुलझाकर परिवारों को व आपसी सम्बन्धों को टूटने से बचाया है। जैन जैनेतर सभी वर्ग का विश्वास आपको प्राप्त है। आप समयज्ञ है एवं जरूरत पड़ने पर सही सलाह देते हैं। कभी कभी सलाह कड़वा हो जाता है। लेकिन परिणाम सदैव हितकर रहे हैं। विगत वर्षों में धर्मपत्नी का वियोग एवं एकमात्र होनहार युवा पुत्र के अकाल निधन ने भी इनकी सामाजिक व संधीय सेवा भावना को बाधित नहीं किया। विगत दिनों आपके हृदय का सफल अस्त्रोपचार हुआ है। जीवन के आठवें दशक को छूने जा रहे इस व्यक्तित्व में जीवट की कोई कमी नहीं है। संयमित जीवन शैली, सादा खान पान एवं जिह्वा संयम आपकी विशेषता रही है। स्वाध्यायशील हैं तथा लेखन व पठन में विशेष रूचि रखते हैं। संर्पकः - पूर्व उपाध्यक्ष, अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन, कांटाबांजी, जिला - बलांगीर (उड़ीसा)


आज समग्र विश्व को विभिन्न समस्याओं ने जकड़ रखा है। एकतरफ क्रूर आतंकवाद द्वारा मानवता का अस्तित्व ही खतरे में है। दूसरी तरफ जाति, धर्म, भाषा एवं क्षेत्रियता के नाम पर हम भारतीय परस्पर लड़-झगड़ रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या वैश्विक आर्थिक संकट के रूप में उपस्थित है। महाशक्तिशाली अमेरिका भी आज बेबस दिखाई दे रहा है। सुदृढ़ जमीन के अभाव ने उनके चमक दमक वाले आवरण को हटाकर के वास्तविक रूप को उजागर कर दिया है। स्टाक मार्केट के धराशायी होने से सभी निवेशक सड़क पर आग गए हैं। कुछ प्रतिष्ठत बैंकों का दिवाला निकल चुका है।
ऐसे में दूसरी सभ्यता और संस्कृति जहां सौ, दो सौ वर्षों में धराशायी हो जाते है, वहीं जगदगुरू भारतीय संस्कृति विगत पांच हजार सालों से अनेक उत्थान, पतन देख कर भी जीवित है, यह हमारे लिए पर आश्वस्तिकारक है। इस संस्कृति को देश विदेश में रह रहे मारवाड़ियों ने सदैव संजीवनी प्रदान की है। अपने पारम्परिक व्यवसाय में संलग्न यह समाज जहाँ कहीं भी रहते हैं, उस मिट्टी की महक बन जाते हैं। देशहित उनका लक्ष्य होता है। आज इसके युवा वर्ग शिक्षा और सेवा के हर क्षेत्र में अग्रणी है। जनसाधारण की आवश्यकता और उपयोगिता को ध्यान में रखकर कुआँ, बावड़ी, मंदिर, धर्मशाला, विद्यालय और चिकित्सालय आदि का निर्माण करते हैं। प्रशासन के लिए न कभी बोझ बनें, न परेशानी का कारण। तभी तो भारतीय प्रोद्योगिकी प्रतिष्ठान, खड़गपुर के निदेशक डॉ. दामोदर आचार्य ने बड़े प्रमोद भाव के साथ कहा था कि देश के प्रोद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों को सुपर मारवाड़ी सृष्टि करने का लक्ष्य बनाना होगा। क्योंकि यह लोग जहां रहते हैं वहां के विकास में मुख्य भूमिका निभाते हैं। अर्थार्जन के साथ साथ निरंतर सेवा और सहयोग की भावना रहने से स्थानीय लोगों का विश्वास और सम्मान भी जीतते हैं।
किन्तु केवल उजले पक्ष देखने से एवं कृष्ण पक्ष की उपेक्षा करने से व्यक्ति और समाज का अहित ही होता है। आडम्बर, प्रदर्शन और अनावश्यक खर्च करने की प्रवृत्ति ने अन्य समाज में ईर्ष्या जागृत करने में कोई कसर नहीं रखी है। समय तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है। उसके अनुकूल स्वयं को नहीं ढाल पाने से हम पिछड़ जायेंगे। धनशाली लोगों के इस दिखावे का समाज के साधारण सदस्यों पर भी नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई दे रही हैं। अभाव से मारवाड़ी समाज का उतना नुकसान नहीं हुआ जितना अति भाव अर्थात अर्थ के दुरूपयोग से हो रहा है।
आज संयुक्त परिवार प्रथा भी अंतिम सांस ले रहा है। मैं, मेरी और मेरे के मध्य दादा, दादी, माँ, बाप कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जबकी बुजुर्ग समाज के चक्षु सदृश होते हैं जो अपने लम्बे अनुभव से समाज को दिशा दर्शन देते हैं एवं युवा वर्ग समाज के पांव होते हैं। बड़ों के दिखाये रास्ते पर चलने का दायित्व इनका है। अतः बुजुर्गों के बिना समाज अंधा एवं युवाओं के बिना पंगु हो जाता है। स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु दोनों में समन्वय जरूरी है।
अन्य वर्गों में वृद्धाश्रम धड़ल्ले से खुलते जा रहे हैं। हमारा समाज इससे लगभग बचा हुआ है, यह संतोष का विषय है। वृद्धाश्रम समाज के माथे पर कलंक है। आज समाज में भ्रूण हत्या, विशेष कर भ्रूण हत्या ने तथा पतिपत्नी के बीच सम्बंध विच्छेद की घटनाओं ने मारवाड़ी समाज के ताने बाने को नष्ट कर दिया है। ऐसे में सबको जागरूक रहना होगा। समाज के नेतृत्व को अपने कर्मों के द्वारा आदर्श उपस्थापित करना होगा। तभी अपेक्षित लाभ मिलेगा। संसार आज संक्रमण काल से गुजर रहा है। आतंकवाद और आर्थिक संकट का सामना करना हमारी मजबूरी है। उसे हम कर भी लेंगे। पर सामाजिक विसंगतियों को हमें फलने फूलने नहीं देना है। तभी महान संत आचार्य श्री तुलसी का स्वप्न सार्थक होगा। "सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा।"

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