नई पीढ़ी अपनी बात मनाने से पहले सोचे
- नन्दलाल रुँगटा
[टिप्पणी: पिछले दिनों अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन ने‘अन्तर्जातीय विवाह - कुछ अनुभव’ विषयक एक संगोष्ठी का कोलकाता में आयोजन किया। गोष्ठी के विषय की घोषणा के साथ ही समाज में एक सुगबुगाहट आरम्भ हो गयी। समर्थन के स्वर के साथ-साथ इस तरह के विषयों पर सम्मेलन द्वारा गोष्ठी आयोजित करने पर दबी जुबां में विरोध के स्वर भी सुनने को मिले।
गत साधारण सभा में भी सम्मेलन के कुछ सदस्यों ने इस सेमिनार पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि इस तरह के सेमिनार सम्मेलन के वैनर तल्ले करने से अन्तर्जातीय विवाह को बढ़ावा मिलेगा। एक सदस्य ने कहा कि वे 'अन्तर्जातीय विवाह' का समर्थन तो करते हैं परन्तु 'अन्तरधर्मिय विवाह' को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर यह लिखा जा सकता है कि समाज की मानसिकता इस बात को अभी भी खुले तौर पर स्वीकार नहीं कर पाई है। सम्मेलन सभापति 'साधरण सभा' में बचाव की मुद्रा में देखे गये। - संपादक]
श्रीमती उमा झुनझुनवाला माइक पर अपने अनुभव रखती हुई, नीचे सभागार में विवाहित जोड़े संदीप बजाज एवं रीता बजाज (यादव)। मंच पर दायें से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हरिप्रसाद कानोड़िया, सम्मेलन सभापति श्री नन्दलाल रुँगटा, पूर्व अध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा, कोषाध्यक्ष आत्माराम सोंथलिया।
कोलकाताः दिनांक 11 जुलाई कोलकाता स्थित ‘‘दी कोलकाता ट्रामवेज कम्पनी’’ के सभागार में अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा आयोजित एक सेमीनार
‘‘अन्तर्जातीय विवाह कुछ अनुभव’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नन्दलाल रुँगटा ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि अन्तर्जातीय विवाह एक सामयिक विषय है। सम्मेलन हमेशा से सम-सामयिक विषयों पर ऐसी संगोष्ठियाँ आयोजित करते आया है। जहाँ वक्ता अपने निजी विचार व्यक्त करते हैं और समाज उस पर चिन्तन करता है। आपने आगे कहा कि सम्मेलन अन्तर्जातीय विवाह विषय पर अपनी कोई राय नहीं रखता, यहाँ विचार रखने वालों के विचार उनके खुद के विचार माने जायेंगे। अन्तर्जातीय विवाह के संदर्भ में सम्मेलन की कोई राय अभी तक स्पष्ट रूप से नहीं बन पाई है, परन्तु समाज के युवाओं में इसके बढ़ते प्रचलन के प्रति समाज के बच्चों को इसके दूरगामी परिणाम के प्रति सजग करना भी हमारा कर्तव्य बन जाता है। समाज के अभिभावक नई पीढ़ी के समक्ष अपनी बात किस प्रकार से रखें या नई पीढ़ी अपनी बात मनाने से पहले अभिभावकों के समक्ष किस प्रकार का आचरण करे यह बात समाज को सोचने के लिये मजबूर कर रही है। इस मौके पर श्रीमती उमा झुनझुनवाला ने अपने अनुभव बयान करते हुए युवाओं को संदेश दिया कि उन्हें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे उनके परिवारवालों को कोई ठेस पहुँचे। प्रो. अजहर ने इस बात पर खुशी जताई कि मारवाड़ी समाज में ऐसे विषयों पर संगोष्ठी आयोजित की जाती है। एक अन्तर्जातीय विवाहित जोड़े संदीप बजाज एवं रीता बजाज (यादव) ने भी अपने खुशहाल वैवाहिक जीवन का जिक्र करते हुए कहा कि किसी को ठेस पहुँचाकर किया गया कार्य सफल नहीं होता। जो माँ-बाप हमें पाल-पोस कर बड़ा करते हैं वे हमारा भला सोचते हैं। इसलिए ऐसे मामलों में उनकी रजामंदी काफी अहमियत रखती है। हमें उनको विश्वास में लेकर ही कोई अहम कदम उठाना चाहिए। इस मौके पर श्री जयगोविन्द इन्दौरिया, एडवोकेट तारा व्यास ने अन्तर्जातीय विवाह से उत्पन्न हो रही विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डाला। उपाध्यक्ष हरिप्रसाद कानोड़िया, कोषाध्यक्ष आत्माराम सोंथलिया आदि मंचस्थ थे। धन्यवाद ज्ञापन संयोजक कैलाशपति तोदी तथा संचालन संयुक्त राष्ट्रीय महामंत्री संजय हरलालका ने किया। सह संयोजक दिलीप गोयनका ने आगत अतिथियों का स्वागत किया।
इस अवसर पर सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा ने बताया कि सम्मेलन का काम सामाजिक बुराईयों पर लोगों की सोच में वैचारिक परिवर्तन लाना है। हम मन परिवर्तन कर सामाजिक बुराइयों पर अंकुश लगाने के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ मारवाड़ी समाज ही एक ऐसा समाज है जहाँ सम्मेलन जैसी संस्था है जो स्वयं में सुधार का प्रयत्न करती है। मुझे 2002 का वाकया स्मरण हो आया जब हैदराबाद में आन्ध्र प्रदेश मारवाड़ी महिला सम्मेलन द्वारा ‘क्या अन्तर्जातीय विवाह उचित है’ विषयक एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था। सम्मेलन के तत्कालीन महामंत्री के रूप में समापन वक्तव्य के लिये मुझे आमंत्रित किया गया था। करीबन एक घण्टे से अधिक विभिन्न महिला वक्ताओं को, जिनमें बुजुर्ग, वयस्क, युवतियाँ-विवाहित एवं अविवाहित सभी शामिल थी को सुना। विषय की समझ, वैचारिक परिपक्वता एवं स्पष्टवादिता ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया। जब मेरे बोलने की बारी आयी तो मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि ‘‘विषय के पक्ष या विपक्ष पर मैं नहीं बोलना चाहता, मुझे तो इस बात पर सन्तोष एवं गर्व है कि मारवाड़ी समाज की महिलायें जो कुछ दशक पहले तक पर्दे में रहती थी, शिक्षा का अभाव था, वह मारवाड़ी महिला समाज आज मारवाड़ी सम्मेलन के बैनर के तले एकत्रित होकर इन विषयों पर खुलकर चर्चा कर रही हैं।’’
मारवाड़ी सम्मेलन एक वैचारिक संस्था है जो विचार परिवर्तन के माध्यम से समाज सुधार एवं समरसता का कार्य करती है। समाज के सम्मुख जो भी प्रश्न, समस्याएँ, कुरीतियाँ प्रस्तुत होती हैं उन पर सम्मेलन विचार कर समाज को उनसे आगाह करता है। विभिन्न समय पर विभिन्न सामाजिक प्रश्नों पर सम्मेलन ने कार्य किया है चाहे वह पर्दा प्रथा हो या मृत भोज, विधवा विवाह हो या तलाक, दहेज या दिखावा, समरसता या राजनीति में भागीदारी, टूटते परिवार या बुजुर्गों के प्रति सम्मान में कमी- समय के साथ-साथ प्रश्न बदलते गये हैं।
उक्त गोष्ठी में चार अन्तर्जातीय विवाहित जोड़ों को अपने अनुभव बाँटने के लिए आमंत्रित किया गया था। दो जोड़े पधारे एवं दो जोड़े अंतिम समय पर अनिर्णय की स्थिति में नहीं आ सके। एक जोड़े ने बड़ी अच्छी बात कही कि ‘‘वे बिना अपने माता-पिता के आशीर्वाद के विवाह नहीं करना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने सात वर्ष तक इन्तजार किया। अब वे खुश हैं और उनके परिवार भी।’’
यह एक सच्चाई है कि सभी माता-पिता अपने लड़के-लड़की का विवाह अपनी जाति में ही करना चाहते हैं, यह उनकी प्राथमिकता भी है, एक सामाजिक मान्यता भी। अन्तर्जातीय विवाह अभी भी एक अपवाद के रूप में है। विभिन्न समाजों में पिछले वर्षों में इसमें एक बढ़ोत्तरी हुयी है, अपना मारवाड़ी समाज भी इससे अछूता नहीं है। आज के सामाजिक जीवन में अन्तर्जातीय विवाह एक यथार्थ के रूप में उभर कर आ रहा है। सम्मेलन कभी भी किसी भी विषय पर चर्चा करने से नहीं कतराया है। समाज के समक्ष जो भी परिस्थितियाँ हैं, उनसे आँख मूँद लेना कूपमण्डूकता होगी। सच्चाई का सामना करते हुए उस पर विवेचना कर समाज को सही दिशा प्रदान करना सम्मेलन का कर्तव्य बनता है। किसी विषय पर बातचीत या मुक्त चर्चा करना न तो उसका समर्थन है न ही उसका विरोध।
[Script Code: Marwari Samaj vs Intercast Mariage]
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