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शनिवार, 21 नवंबर 2009

अपनों से नहीं, अपनों के लिए लड़े!

लेखक:- ओमप्रकाश अग्रवाल


Agrasen Maharaj bavadiकॉमनवेल्थ खेलों के समय विदेश से आने वाले मेहमानों को दिखाने के लिए अनेक स्थान निश्चित किये हैं। केवल बौ( धर्म के अनुयायियों को दिखाने के लिए दो दर्जन से अधिक स्थान चिन्हित किये है। इन स्थानों में अग्रवाल समाज का कोई भी स्थान नहीं है, क्योंकि हमने कभी अपने इतिहास की तरफ अग्रवाल समाज ने कोई चेष्टा ही नहीं की! मेरा मानना है कि अग्रवाल समाज के इतिहास अन्य समुदायों से कम नहीं है।
क्नॉट प्लेस के निकट हेली रोड पर स्थित अग्रसेन बावड़ी और महरौली के निकट सारबन ग्राम में प्राप्त एक शिलालेख अग्रवाल समाज की धरोहर है। महाराजा अग्रसेन बावड़ी और शिलालेख हमारे जनहितैशी कार्यों की हजारों वर्ष पुरानी परम्परा के साक्ष्य हैं। शिलालेख में लिखा है कि अग्रोदक; अग्रोहा का प्राचीन नामद्ध के वणिकों द्वारा जनहित में किये गये कार्यों के लिए यह प्रशस्ति लेख है।
Agrasen maharaj sheelalekh1911 में नई दिल्ली के निर्माण के समय अग्रवाल समाज बहुत ही समृद्ध था! 1857 की क्रांति में अकेले लाला रामदास गुड़वाले ने बहादुरशाह जफ़्फर को 2 करोड़ रूपये भेंट में दिये थे और परिणाम में उन्हें फाँसी पर लटकना पड़ा।
मेरा लिखने का अर्थ यह है कि आज जहाँ नई दिल्ली बसी हुई है, अग्रवाल समाज की बहुत सम्पदा थी। उदाहरण के लिए शहीद भगतसिंह मार्ग; गोल मार्किट को जाने वाला रास्ता पर अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर है। इसका अर्थ यह है कि अग्रसेन बावड़ी के समीप अग्रवाल समाज के बहुत परिवार थे। चाणक्यपुरी के मालचा गांव में अग्रवालों के 15 परिवार थे। इन परिवारों को ब्रिटिश सरकार ने बिना कोई मुआवजा दिये यहां से बेघर कर दिया था। भारत साधु समाज का कार्यालय उस समय के अग्रवाल पंचायती घर पर ही बना हुआ है। मौर्य शेरेटन होटल के सामने अग्रवाल प्याउ के अवशेष आज भी देखने को मिल जायेंगे।
अग्रवाल समाज द्वारा दिल्ली में आज 50 से अध्कि सार्वजनिक ;भवन व धर्मशालाएँ बनाई हुई हैं। 12 कॉलेज, 2 दर्जन से अधिक विद्यालय अनेक अस्पताल संचालित है।
साथ ही यह भी कटुसत्य है कि अग्रवाल समाज हमेशा अपनों से लड़ा है, अपनों के लिए नहीं! हिन्दी साहित्य के शलाका पुरूष विष्णु प्रभाकर बीमार होते हैं तो दिल्ली सरकार उनका खर्च वहन करती है और इसी तरह अग्रशिरोमणी बनारसी दास गुप्ता बीमार होते हैं तो हरियाणा सरकार उनका खर्च उठाती है। करोड़ों रूपये दान करने वाला समाज का एक चेहरा यह भी है। क्योंकि समाज के पास अपनों के लिए अन्यथा है ही नहीं।
अग्रसेन बावड़ी समीप जब बहुमंजिलें भवन का निर्माण हो रहा था, उस समय कमला नगर वाले स्व. लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, एडवोकेट ने हाईकोर्ट में एक मुकदमा दायर कर उसे रोकने का प्रयास किया था। लेकिन यह भी सत्य है कि अग्रवाल समाज के किसी बड़े नेता ने उनका साथ नहीं दिया।
यह सर्वविदित है कि दिल्ली से फाजिल्का जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग का नाम महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय राजमार्ग किया हुआ है। लेकिन इस मार्ग पर बन रहे पहला मैट्रो स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन पर नहीं है। क्योंकि गौरव और रत्न की उपाधी से विभूषित और शिलालेखों पर अपने नाम लिखवाने वाले समाज के मठाधीशों के पास समय का अभाव है।
समाज के शुभचिंतकों से मेरा इस लेख के माध्यम से यही आग्रह है कि हम अपने उज्जवल इतिहास को जानने व उसे प्रकाशित करने के लिए सार्थक कदम उठायें।


सम्पर्क: युवा अग्रवाल, 8233 रानी झाँसी मार्ग, दिल्ली-6
मो.: 9310814014

1 टिप्पणी:

  1. सही लिखा अपने ! बस यही स्वरुप रह गया है मारवाड़ी समाज का या यों कहिये अगरवाल समाज का। दुःख होता है तो होता रहे ! आज कितने अग्रवाल बन्धुओं में जाति गौरव बचा है।
    आपको दुःख हुआ इस लिए अपने लिखा है। पर कितने लोग है जिन्हें दुःख भी होता है।

    हमने अपने अग्रवाल गौरव अग्रसेन जी महाराज को भुलाया है। यही सच है और यह सच ही हमारी जाति का सबसे बड़ा अभिशाप है जिसके लिए अतीत बर्तमान और भविष्य कभी हमे क्षमा नहीं करेगा।

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