‘‘भगवान कुछ ऐसा वरदान देना कि मैं सुबह से शाम तक व्यस्त रहूँ। बस पढ़ाई के तुरन्त बाद ही भगवान ने कुछ ऐसा कर दिया, कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।’’ -सज्जन भजनकाहरियाणा के बुबानी खेड़ा गाँव में 3 जून 1952 को सज्जन भजनका जी का जन्म हुआ। जन्मदाता पिता महावीर प्रसाद भुवानीवाला [भजनका] से उनके बड़े भाई रामस्वरूपदास भजनका को जन्म के दो माह की उम्र में ही गोद में चले गए। रामस्वरूपदास भजनका जी को कोई संतान नहीं थी। दत्तक माता व पिता उनको साथ लेकर अपने तत्कालीन निवास स्थान असम के तिनसुकिया शहर में आ गये, इस शहर में रामस्परूपदास जी का गल्ले का कारोबार था। बालकाल की कोमलता अभी शेष भी नहीं हुई थी कि साढ़े पाँच वर्ष की अल्पायु में ही सज्जन जी के दत्तक पिता श्री रामस्वरूप जी का स्वर्गवास हो गया। पिता के असमय देहान्त ने सज्जन जी के बाल्यकाल को कठिन बना दिया। कारोबार बन्द हो गया, एकमात्र साधन भाड़े की आय था, भजनका जी की आँखों में वेदना के पल झलक पड़ते हैं, बताते हैं कि ‘‘मेरी माँ (माताजी का नाम श्रीमती लाली देवी) एक अनपढ़ एवं धार्मिक महिला थी, पिताजी की मृत्यु के पश्चात माँ ने अपने पीहर इत्यादि से कोई सम्बन्ध नहीं रखते हुए इनके लालन-पालन को ही अपना लक्ष्य बना लिया । बताते हैं कि, सीमित साधनों के बावजूद भी उनको कोई हीन भावना नहीं होने दीं।’’ हिन्दी इंग्लिस हाई स्कूल तिनसुकिया [असम] से आपने शिक्षा प्राप्त की । आप बताते हैं कि इस विद्यालय का रिजल्ट शत-प्रतिशत होता था । चौथी कक्षा से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू होती थी। विद्यालय का जिक्र आते ही आपकी बचपन की कई बातें ताजा हो गईं, बचपन के दोस्त, खेलकूद आदि-आदि, बचपन के दोस्तों में श्री विष्णु खेमानी, जो इन दिनों मद्रास रहते हैं एवं उनके साझीदार श्री संजय अग्रवाल के बड़े भाई श्री मधुकर अग्रवाल भी थे। आपने तिनसुकिया कॉलेज से बी.काम. किया। आप बताते हैं कि उन दिनों आपके पास कोई कारोबार नहीं था। उस समय मैं भगवान से मनाता था कि ‘‘भगवान कुछ ऐसा वरदान देना कि मैं सुबह से शाम तक व्यस्त रहूँ। बस पढ़ाई के तुरन्त बाद ही भगवान ने कुछ ऐसा कर दिया, कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।’’ बचपन से ही आप सामाजिक संस्थाओं से जुड़ते चले गए, जिनमें प्रमुख हैं- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मारवाड़ी सम्मेलन, मारवाड़ी युवा मंच, लियो क्लब, एवरग्रीन क्लब ;तिनसुकिया का स्पोर्टस क्लबद्ध, नवयुवक संघ, राष्ट्रीय हिन्दी पुस्तकालय, आदर्श हिन्दी विद्यालय, विवेकानन्द केन्द्र आदि। सभी छोटी-बड़ी सामाजिक संस्थाओं में आप बचपन से ही भाग लेने लगे थे, जब आपके पास साधन सीमित थे तब भी, और आज भी, आपके मन में सामाजिक कार्यों के प्रति काफी रुझान देखने को मिलता है। बी.काम. करने के पहले ही आपकी सगाई और तुरत बाद ही शादी हो गई, शादी होते ही एक नई जिम्मेदारी के एहसास ने काम की तरफ मोड़ दिया, सबसे पहले खाद की एजेंसी लेकर काम शुरू किया, फिर ताऊजी के साथ मिलकर टीचेस्ट प्लाइवुड का एक कारखाना लगाया, जिसमें काफी घाटा लगा एवं उस समय तक की सारी जमा-पूँजी खतम हो गई। परन्तु हिम्मत नहीं हारते हुए पुनः अक्टूबर 1976 में इन्होंने अपना अलग से एक छोटी-सी विनियर मिल ( प्लाइवुड पते बनाने की मिल ) सात हजार रुपये सालान भाड़े में लेकर नया काम शुरू कर दिया। भजनका जी साथ ही यह भी बताते हैं कि ‘‘उस समय मेरी कुल पूँजी (5000/=) थी। 80000/- की देनदारी और जमा मात्र 75000/-, प्रमाणिकता से बिना समझौता किये एवं क्षति को पूरा करने का दृढ़ निर्णय ने मन को भीतर से झकझोर कर रख दिया ।’’ सच है कि आज श्री भजनका जी जिस मुकाम पर आ खड़े हैं इसके पीछे है, कठिन श्रम एवं इमानदारी। - शम्भु चौधरी
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
जवाब देंहटाएंEk Achhi Kahani Ka Prastutikaran Aapke Dwara. Thank You For Sharing.
प्यार की स्टोरी हिंदी में