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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

चाळो राजस्थानी बांचणो सीखां- १ - शंभु चौधरी

पाठ - 1


राजस्थानी-
किणी भी समाज रै जातीय-चरित्र री खरी-खरी ओळखाण उणरै लोक-साहित्य सूं हुय सकै। उण समाज रा मोल अर मानतावां कांई है? उणरी नैतिक अवधारणावां कांई है? वो समाज कुणसा जीवनदर्शां नैं अंगेज’र चालै है। उणरै जीवण री रीत-भांत कांई है? बो कुण-सी जातीय स्मृतियां नैं अंवेर राखणो चावै है, आद-आद मोकळी बातां री जाणकारी उण समाज रै लोक-साहित्य सूं हुय सकै है। जो समाज जितरो परम्परा-समृद्ध, सांस्कृतिक दीठ सूं जितरो सजग अर जीवन-रस सूं जितरो लबालब है उणरो लोक-साहित्य भी उतरो ही सांवठो, रस अर रंग भीनो हुया करै है। - उजास ग्रन्थ माळा से
हिन्दी-
चलैं राजस्थानी पढ़ना सीखतें हैं।
किसी भी समाज के जातिय-चरित्र की सच्चाई की जानकारी उस समाज के लोक-साहित्य से हो सकती है। उस समाज की हैसियत और मान्यता क्या है? उनकी नैतिक अवधारणा कैसी है? वह समाज किनके जीवन-दर्शनों का अनुशरण करता है। उनके जीवन की रीत-भेष-भूषा कैसी है? वह कौन सी जातीय स्मृतियों को बचाकर रखना चाहता है, आदि-आदि बहुत सी बातों की जानकारी उनके समाज के लोक-साहित्य से हो सकती है। जो समाज जितना परम्परा-समृद्ध सांस्कृतिक विचारधाराओं से जितना सजग और जीवन-रस से जितना लबालब है उनका लोक-साहित्य भी उतना ही समृद्ध, रस और रंग से भरा हुआ करता है। - उजास ग्रन्थ माळा से

राजस्थानी- हिन्दी
खरी-खरी - किसी बात को हूबहू बताना
ओळखाण - जानकारी होना
उण, उणरै, उणरी - उन, उनके, उनकी
मानतावां - मान्यता
कांई - क्या
कुणसा - कौन सा
कुण-सी - कौन सी
अंगेज’र - अनुशरण करना
चालै- चलना
रीत-भांत - रीत-रिवाज
अंवेर - बचाना, संभालना
राखणो - रखना
चावै - चाहना
आद-आद - आदि-आदि
मोकळी - बहुत सी
बातां - बातें
दीठ - रूप में
जितरो - जितना
सांवठो - समृद्ध, मजबूत पक्ष
भीनो - भींगा हुआ


राजस्थानी-
किणी भी समाज रै जातीय-चरित्र री खरी-खरी ओळखाण उणरै लोक-साहित्य सूं हुय सकै।
हिन्दी-
किसी भी समाज के जातीय चरित्र की सच्चाई की जानकारी उस समाज के लोक-साहित्य से हो सकता है।


राजस्थानी-
उण समाज रा मोल अर मानतावां कांई है? उणरी नैतिक अवधारणावां कांई है?
हिन्दी-
उस समाज की क्या हैसियत और मान्यता क्या है? उनकी नैतिक अवधारणा कैसी है?


राजस्थानी-
वो समाज कुणसा जीवनदर्शां नैं अंगेज’र चालै है।
हिन्दी-
वह समाज किनके जीवन दर्शन का अनुशरण करता है।


राजस्थानी-
उणरै जीवण री रीत-भांत कांई है?
हिन्दी-
उनके जीवन की रीत-भेष-भूषा कैसी है?


राजस्थानी-
बो कुण-सी जातीय स्मृतियां नैं अंवेर राखणो चावै है।
हिन्दी-
वह कौन सी जातीय स्मृतियों को बचाकर रखना चाहता है।


राजस्थानी-
आद-आद मोकळी बातां री जाणकारी उण समाज रै लोक-साहित्य सूं हुय सकै है।
हिन्दी-
आदि-आदि बहुत सी बातों की जानकारी उनके समाज के लोक-साहित्य से हो सकती है।


राजस्थानी-
जो समाज जितरो परम्परा-समृद्ध, सांस्कृतिक दीठ सूं जितरो सजग अर जीवन-रस सूं जितरो लबालब है।
हिन्दी-
जो समाज जितना परम्परा-समृद्ध सांसकृतिक विचारधाराओं से जितना सजग और जीवन-रस से जितना लबालब है।


राजस्थानी-
उणरो लोक साहित्य भी उतरो ही सांवठोए रस अर रंग भीनो हुया करै है।
हिन्दी-
उनका लोक साहित्य भी उतना ही समृद्ध, रस और रंग से भरा हुआ, हुआ करता है।

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