लक्ष्मीनारायण रंगा’र दोहा
लक्ष्मीनारायण रंगा के दोहे
1.
संस्क्रति में घुळर्यों, किसौ कोढियो अंस
घर-घर रावण जनमिया, गांव-गांव में कंस।
हिन्दी में -
संस्कृति में घुल रहा, कैसा कोढ़िया अंस
घर-घर में रावण जन्म लिया, गांव-गांव में कंस।
2.
सदनां मांही चल रया, खुरसी, जूता जंग
जनता पर भी चढरयो, ओ संसदिया रंग।
हिन्दी में -
सदन के अंदर चल रहा, कुर्सी, जूता की लड़ाई
जनता पर भी चढ़ गया, यही संसद का रंग।
रामजीलाल घेड़ेला ‘भारती’ की कविता -
1.
भारत रै लोकतंत्र में
सगळा मौज मनावै।
जिणनै मिलै मौको
लूट-लूट’र खावै ।।
हिन्दी में -
भारतीय लोकतंत्र में
सभी मौज मनाते।
जिनको अवसर मिला
वही लूट-लूट के खाते।।
2.
इण लाकेतंत्र मांय
केइयां रा सूरज छिपै नीं।
रात दिन करै मैनत
उण रा चुल्हा जगै नीं।।
हिन्दी में -
इस लोकतंत्र में
कितनों का सूरज डूबता ही नहीं।
रात दिन मेहनत करे
उनके घर चुल्हा जले नहीं।।
दौलतराम टोडासरा की कविता -
1. दान
मुनीम जी रो
के लागै पल्लैऊं
दे देवै दान
सेठजी रै गल्लैऊं।
2. कीं
बीं में कोनी कीं
जको कैवै कीं
करै कीं?
हिन्दी में -
1. दान
मुनीम जी का
क्या जाता पल्ले से
दे देतें हैं दान
सेठजी के गल्ले से
2. कुछ
उनमें कुछ नहीं
कहता है कुछ
करता है कुछ?
राजस्थानी - हिन्दी
संस्क्रति - संस्कृति
सगळा - सभी
मैनत - मेहनत
केइयां - कितनों
के लागै - क्या जाता
पल्लैऊं - पल्ले से
गल्लैऊं - गल्ले से
बीं में - उनमें
कोनी - नहीं
कीं - कुछ
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