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शनिवार, 27 जून 2009

उम्र का ढलान और सिसकियाँ लेता बुढ़ापा - त्रिलोकी दास खण्डेलवाल


गौतम बुद्ध ने कहा था कि संसार ‘दुखमय है और दुख का कारण ‘तृष्णा’ है, पर उम्र के साथ ये सब तृष्णायें जब मर जाती है तब दुख कम होता जाना चाहिए। किन्तु सारे संसार में वृद्धत्व आज जितना दुखी और पीड़ा में है उतना शायद ही वह कभी रहा होगा।
विज्ञान ने मनुष्य की उम्र बढ़ा दी। दवाइयों का अविष्कार कर स्वास्थ्य सेवाओं का चमत्कार पैदा कर दिया। किन्तु यह बुढ़ापा नरक इसलिए बन रहा है कि मनुष्य का परिवार टूट रहा है। हजारों की संख्या में सभी देशों में लोग अपने अपने गांव छोड़-छोड़ कर शहरों के फुटपाथों और झुग्गी झोपड़ियों में बसने के लिए आगे चले आ रहे है। खेती अब फलदायी व्यवसाय ही नहीं रहा और कठोर मेहनत के कारण बुढ़ापा हमारे किसानों को पचास साल की उम्र में ही घेर रहा है। महंगाई की मार से त्रस्त अधिकतर शहरी परिवार भी अपने बच्चों का भरण पोषण तक बड़ी कठिनाई से कर पाते हैं और उनके पास बुढ़ापे के लिये शायद ही कोई ‘बचत’ रह पाती है। जिन बच्चों पर वे खर्च करते हैं, वे बड़े होकर उन्हें छोड़ते जा रहे हैं और वृद्ध अवस्था की गरीबी, अकेलापन और बीमारियां उनकी जिन्दगी में अधंकार भर कर ‘‘उम्र का संकट’’ खड़ा कर रही है। एक छोटे से वर्ग को छोड़कर शहरों और महानगरों में अपने आदरणीय बुजुर्गो को अपने पास रखने के लिए अधिकांश घरों में एक अलग कमरा तक नहीं है। गांवों में रोजगार और स्वास्थ्य की पीड़ा निवारक सेवायें नहीं के बराबर है। फलस्वरूप बीमार और लाचार बुढ़ापा अपनी जिन्दगी की संध्या में रोता हुआ सिसक रहा है। दान धर्म के सभी स्त्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं और तनावों से टूटते परिवार अपने बुजुर्गों की तो क्या स्वयं अपनी स्वयं की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे में यह आवश्यक है कि सरकार, समाज और परिवार सभी मिल कर चारों ओर से एक ऐसा अभियान चलाये कि वृद्धत्व की यह पीड़ा थोड़ी बहुत घट सके। संसार के सभी विकसित देशों में वृद्धावस्था पेंशने, वृद्धावस्था अस्पताल, वृद्ध आवास की सुविधायें और वृद्ध सेवाओं के केन्द्र बड़ी सरलता से उपलब्ध हैं। भारत में गरीबी, अज्ञान और विज्ञान के बढ़ते प्रभाव के कारण यह स्थिति
अधिक विषम है। सभी स्तर पर सभी को इस आन्दोलन से जोड़े बिना ‘‘उम्र का यह कहर’’ जिन्दगी की शाम को शान्ति से नहीं गुजरने देगा। इस यज्ञ में शासक, शासित, अमीर, गरीब, व्यापारी, समाज सुधारक धर्म गुरू सभी अपने-अपने ढंग से अपनी आहूतियां दे सकते है। बूंद-बूंद से यदि इस घड़े को भरा जाये तो महात्मा गांधी की इच्छानुसार ‘‘हर आंख के आंसू पौंछे जा सकते है’’ आवश्यकता है इसे महसूस करने की और वृद्ध सेवा को ‘‘दरिद्र नारायण’’ की मानव सेवा मानकर एक संकल्प लेने की।
सन् 1993 में स्थापित हमारा सामाजिक सुरक्षा संस्थान (एस.एस.एफ) गत 15 वर्षों से ऐसी ही एक जन चेतना जगाने में कार्यरत है। संस्थान के अथक प्रयासों के फलस्वरूप केन्द्र सरकार ने 200 रु. प्रतिमाह की वृद्धावस्था पेंशन 65 वर्ष की उम्र पार कर चुके सभी आश्रय हीन नागरिकों के लिए स्वीकृत कर दी है। इतनी ही राशि राज्य सरकारों द्वारा दिये जाने की अपेक्षा है। यद्यपि आज की महंगाई में जहां 400/- रु. में एक अमीर व्यक्ति को एक नाश्ते की प्लेट भी नहीं मिलती, ये 400/- रु. पूरे माह के लिए ऊँट के मुँह में जीरा भी नहीं लगते और उस पर भी हालात ये हैं कि केरल सरकार केवल 35/- रु. मासिक, मध्य प्रदेश सरकार 75/- रु. मासिक और असम और मिजोरम 50/- रु. मासिक देकर हमारे वृद्धजनों का एक मजाक उड़ा रहे हैं। केन्द्र और राज्यों द्वारा दी जाने वाली वृद्धावस्था पंेशन की राशि के आंकड़े इस विभीषिका को स्पष्ट करते हैं -
(क) राज्य सरकार जो राष्ट्रीय वृद्ध आयु पेंशन योजना में कोई अंशदान नहीं दे रही है उनके नाम हैं -
1. आन्ध्रप्रदेश 2. बिहार 3. जम्मू एण्ड कश्मीर 4. उड़ीसा 5. अरूणाचल प्रदेश 6. मणिपुर 7. मेघालय 8. नागालैण्ड 9. द्वीप एवं नगर हवेली 10. दमन एण्ड द्वीव
(ख) केरल सरकार केवल 35 रु. अपना अंशदान राष्ट्रीय वृद्ध आयु पेंशन योजना हेतु दे रही है।
(ग) केवल 50 रु. का अपना अंशदान देने वाले राज्य है-
1. असम और 2. मिजोरम
(घ) इसी प्रकार मध्यप्रदेश राज्य सरकार केवल 75 रु. का अपना अंशदान राष्ट्रीय वृद्ध आयु पेंशन योजना को दे रही है।
(च) इस राष्ट्रीय वृद्ध आयु पेंशन योजना में 100 रु. का अंशदान देने वाले राज्य हैं -
1. छत्तीसगढ़ 2. हरियाणा 3. हिमाचल प्रदेश 4. उत्तरप्रदेश 5. त्रिपुरा और 6. लक्ष्यद्वीप
(छ) महाराष्ट्र सरकार का अपना अंशदान 175 रु. प्रतिमाह ही है।
(ज) 200 रु. का अपना अंशदान देने वाले राज्य हैं -
1. गुजरात 2. झारखण्ड 3. कर्नाटक 4. राजस्थान 5. तमिलनाडु 6. उत्तरांचल 7. पश्चिम बंगाल और 8. सिक्किम
(झ) पंजाब और चण्डीगढ़ की सरकारें केन्द्र 200 रु. से भी
अधिक 250 रुपये प्रतिमाह देती हैं।
(ट) अण्डमान एवं निकोबार द्वीप की सरकारें भी 300 रु. प्रतिमाह दे रही हैं।
(ठ) पोण्डिचेरी का अंशदान तो 400 रुपये प्रतिमाह है।
(ड) गोवा और एनसीटी (दिल्ली) की स्थिति तो इतनी शानदार है कि ये राज्य सरकारें केन्द्र से चार गुनी 800 रु. प्रतिमाह की पेंशने दे रही है। पर कुल मिलाकर स्थिति अत्यन्त सोचनीय है।
हमारी सरकार अभी तक तो यह भी नहीं मानती कि 235 रुपये या 275 रु. प्रतिमाह में एक व्यक्ति किस प्रकार जी सकता होगा, इलाज कराना या फल दूध खाना पीना तो शायद उसकी तकदीर में ही नहीं है। कहना न होगा कि हमारे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सांसद या मंत्रियों को जो हम कानूनी वेतन और अन्य सुविधायें दे रहे हैं उससे लाखों लोगों को वृद्धावस्था में मुफ्त दवाईयां दी जा सकती है। तुलना इसलिए जरूरी है कि ये सब सुविधाभोगी लोग कुछ वर्षों के बाद जब वृद्धत्त्व के घेरे में आ जायेंगे, तब शायद उन्हेें यह अहसास होगा कि उम्र का ढलान कितनी बड़ी त्रासदी है और उसके लिए कितना कुछ किया जाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
प्रातः स्मरणीय मदर टेरेसा की प्रेरणा से जब सामाजिक सुरक्षा संस्थान स्थापित किया गया। तभी से हम देश, विदेश के सौभाग्यशाली और प्रभावशाली लोगों को जगा-जगा कर उनसे यह प्रार्थना कर रहे हैं कि वे अपने इस पवित्र कर्तव्य को पूरा करने के लिए बिल गेट्स, वारेन बफेट जैसे संसार के धनाढ्यों से प्रेरणा ले। इन महापुरुषों ने अपना सर्वस्व दान कर दुखी और दरिद्र मानवता के लिए सेवा का एक मार्ग प्रशस्त किया है। कितने ही नोबल पुरस्कार विजेता हमारे इस चेतना अभियान से जुड़कर सभी वर्गों से यह अपील कर रहे हैं कि वे उन लोगों की सेवा के लिए आगे आयें जिन्होंने अपना सारा जीवन हमारी पीढ़ी को ‘लायक बनाने’ में लगा दिया। जीवन की दोपहरी में पसीना बहाने वाले हमारे ये बुज़ुर्ग अपनी जीवन की संध्या में हमारी छांव चाहते हैं। यह उनका मानव अधिकार है और हमारा एक विनम्र सामाजिक दायित्व।
1. यदि आप राजनीति से जुड़े हैं तो कानून बनवाएँ। वृद्धावस्था पेंशन राशि बढ़वाएँ उम्र को 65 वर्ष से 60 वर्ष करवायें।
2. यदि आप उद्योगपति और समर्थ व्यापारी हैं तो वृद्धावस्था आश्रम और ‘डे केयर सेन्टर’ स्थापित करें।
3. यदि आप धर्म गुरू और समाज सेवी हैं तो अपने अनुयायी को त्याग, उदारता और उत्साह के साथ वृद्ध सेवा के कार्य में लगने को कहें।
4. यदि आप विद्यार्थी हैं तो सप्ताह में कुछ घंटे अस्पताल तथा वृद्ध सेवी संस्थाओं में जाकर रक्तदान करें, दवाईयां बांटंे।
5. धार्मिक संस्थाओं में भोजन के पैकिट तैयार करवाकर दुखी और आर्त मानवता के दर्द में शामिल हो और दर्द का रिश्ता स्थापित करें।
उम्र के साथ आने वाली बाधायें और विकलांगतायें तरह-तरह की सेवा सुश्रुषा चाहती है। एक मुस्कराहट मात्र से उन्हें अपनापन महसूस होता है। यह एक पुण्य कार्य है। मानवता की ऐसी सेवा जो व्यक्ति को आत्मिक प्रसन्नता और संतोष देती है। आइये, अपनी इस भागम भाग की हारी थकी जिन्दगी में से कुछ समय निकाल कर उन लोगों के आंसू पोंछे जो मुस्कराहट के सच्चे हकदार हैं।

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