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शनिवार, 27 जून 2009

मारवाड़ी समाज और मारवाड़ी सम्मेलन

नन्दलाल रूँगटा,
अध्यक्ष, अखिल भरतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन

Nandlal Rungta, Chaibasa



सम्मेलन अपने 75वें वर्ष की तरफ अग्रसर हो रहा है। सम्मेलन की नींव रखने के पीछे समाज को एक सूत्र से जोड़ना रहा, जिसकी जरूरत हमें कल भी थी और आज भी जस की तस बनी हुई है। हाँ ! उस समय समाज की जो जरूरतें थी, उसमें काफी परिवर्तन आया है। जहाँ एक तरफ समाज रूढ़िवादी परम्पराओं से अलग हटकर सोचने लगा वहीं समाज में दिखावा, आडम्बर ने अपनी जगह बना ली है। समाज ने शिक्षा में प्रगति की है तो उद्योग के क्षेत्र में क्रमशः पिछड़ता जा रहा है। परम्परागत कारोबार से नई पीढ़ी नाता तोड़ती जा रही है। पूर्वजों द्वारा स्थापित समाजसेवा की कई संस्थाओं में नई ऊर्जा को या तो नजरअंदाज किया जाता रहा है या वर्तमान संदर्भ में संस्था रूचिकर न होने से नई ऊर्जा ऐसी संस्थाओं से नहीं जुड़ पाती है। धीरे-धीरे क्लब संस्कृति, समाज की संस्कृति बनती जा रही है। इन सबके रहते हुए भी समाज को एक संगठन की जरूरत महसूस होती रहती है। समय-असमय समाज को कई प्रान्तों में सामाजिक/राजनैतिक संकटों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय प्रशासन या राजनैतिक दल ऐसे समय में समाज को साथ देती दिखाई नहीं देती। इसके मूल में हमारे समाज का असंगठित होना एक मात्र कारण है। जहाँ थोड़ा बहुत संगठन है वहाँ किसी तरह से समाज अपनी सुरक्षा कर पाती हैं परन्तु इस सुरक्षा के बदले समाज को भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
सम्मेलन के 74 साल के इतिहास का आंकलन करने से हमें चौंकाने वाले तथ्य सामने मिलते हैं, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि सम्मेलन वह सब कर रहा है जो हम सोच भी नहीं सकते। सम्मेलन ने समाज को न सिर्फ सुरक्षा प्रदान की, एक समय जब समाज को उसके वोट से वंचित किया जा रहा था तो सम्मेलन के वैनेर के तल्ले ही हमें अपने हक की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। यह सही है कि सम्मेलन एक ऐसी संस्था है, जिसमें अन्य संस्थाओं की तरह मनोरंजन के कार्यक्रम नहीं लिये जाते, न ही किसी क्लब की तरह इस संस्था में कोई ‘खाने-पीने’ की किटी पार्टी का आयोजन ही किया जाता है। शायद कई बार कुछ लोग इस संस्था पर ये आरोप मंड़ते नजर आते हैं कि सम्मेलन सिर्फ ‘‘आये का स्वागत - गये की विदाई’’ आयोजन करने की संस्था बन कर रह गई है। जो कि बिलकुल गलत है। जबकि वास्तविकता यह है कि सम्मेलन ही एक मात्र ऐसी संस्था है जो देश भर में मारवाड़ी समाज का प्रतिनिधित्व कर पाने में सक्षम है।
सम्मेलन की आज 12 प्रान्तों में शाखायें हैं, इसके निर्णय से मारवाड़ी समाज बहुत हदतक प्रभावित होता रहा है। असम के गांव से लेकर बिहार, बंगाल, झारखण्ड, उत्तर-प्रदेश, छत्तिसगढ़, उत्कल, मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तामीलनाडू प्रान्तों में सम्मेलन के कार्यकर्ता कार्य कर रहें हैं। समाज के सैकड़ों लोगों ने अपने जीवन के कीमती क्षण समाज को संगठीत करने में लगा दिये। हम चाहते हैं कि इस पूँजी को और मजबूत आधार प्रदान किया जाय। समाज को सम्मेलन के उद्देश्यों से भली भाँती परिचित कराया जाय कि अन्य संगठनों से सम्मेलन भिन्न कैसे और सम्मेलन द्वारा लिये गये निर्णय समाज के लिये कितने कारगार हैं।

सम्मेलन का कार्य समाज हित में व्यापक है इसे और व्यापक बनाने के लिये सम्मेलन को न सिर्फ प्रान्तीय स्तर पर, बल्कि सम्मेलन की शाखाओं हर गाँव तथा शहर में इस संगठन को ओर अधिक संगठीत करने पर भी हमें और अधिक ध्यान देने की जरूरत है। हमारी चेष्टा रहनी चाहिये कि समाज के प्रत्येक मारवाड़ी परिवार से कम से कम एक सदस्य सम्मेलन का साधारण, आजीवन या संरक्षक सदस्य जरूर से बने। यह बात सभी जानते हैं कि किसी भी जातिगत संस्थाओं का विकल्प संभव है, परन्तु मारवाड़ी सम्मेलन का विकल्प खोजना समाज को कमजोर करना है। आईये समाज के इस संगठन को हर स्तर पर और अधिक मजबूत करने में अपना योगदान देवें।

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