आपणी भासा म आप’रो सुवागत

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शनिवार, 5 नवंबर 2011

भुपेन हजारिका कोणी रया

भुपेन हजारिका
(8 सितंबर, 1926 - ५ नवम्बर २०११)
आपां सैं मिल’र उणाणै आपणी श्रद्धांजलि अर्पित करां हां।
Bhupen Hazarika
मानीज्ता भुपेन हाजारिका रो काल शनिवार 5 नवंबर 2011 णै मुंमबई में आपको सवरगवास होग्यो। आपको जन्म 8 सितंबर 1926 को हो। 86 वरीसीय हाजारिका जी को जनम असम रे सादिया गांव में होयो थे। आप दस बरस री उमर से ही गीत लिखण अर गाणणा लाग्या था। ‘‘दिल हूम-हूम करे’’ और ‘‘ओ गंगा बहती हो क्यूं’’गीत सूं आपणै देशभर में आपरो बड़ो नाम होग्यो। आपको एक गीत ‘‘ओ गंगा बहती हो क्यूं’’ रो राजस्थानी अनुवाद असम का राजू खेमका ने कियो है जिको आपां उणणै आपणी श्रद्धांजलि स्वरूप अठै प्रस्तुत करां हैं। आपको राजस्थान से काभी ळगाव भी रयो है। मानीज्ता गजानन वर्मा आपका नजदिक का मितरां में हा। आपकी गीत के प्रति लगण देख असम का युग पुरुष स्व.ज्योति परसाद अगरवाल जी, आपणै मंच पर गाणै री प्ररेणा दी थी। तब सूं आप असम के गीत संगीत पर राज करतां आया ।


ओ गंगा बहती हो क्यूं?
© - डॉ.भूपेन हजारिका -




[मूल असमिया भाषा से हिन्दी में रूपान्तर]
विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यों ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुआ
निर्लज्य भाव से बहती हो क्यों ?
अनपढ़ जन खाध्य विहीन,
नेत्र विहीन देख मौन हो क्यों ?
इतिहास की पुकार, करें हँकार
ओ गंगा की धार, निर्वल जन को सकल संग्रामी
समग्रगामी बनाती नहीं हो क्यों ?
व्यक्ति रहे व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज नहीं तोड़ती हो क्यों ?
स्त्रोतस्विनी तुम न रही, तुम निश्चय चेतना नहीं
प्राणों से प्रेरणा बनती न क्यों ?



[मूल असमिया भाषा से राजस्थानी में रूपान्तर]
लांबी है अथाग, प्रजा दोन्यू पार
करे त्राय-त्राय, अणबोली सदा ओ गंगा तू
ओ गंगा बैवे है क्यूं ?
नेकपाणो नष्ट हुयो, मिनख पणो भ्रष्ट हुयो,
निरलज्जा बण बैवे है क्यूं
अणभणिया आखरहीन, अणगिण जन रोटी स्यूं त्रीण
नैत्रहीन लख चुप है क्यूं
इतिहास की पुकार, करें हुंकार-
हे गंगा की धार निवले मानव ने जुद्ध वणी,
सब ठौरजयी वणावै नहीं है क्यूं ?
मिनक रहवै मिनखांचारी, सगळा समाज निभ्हे स्वैच्छाचारी
प्राणहीन समाज नै तोड़े नहीं हैं क्यूं ?
सुरसरी तू ना रै वै, तू निश्चय चेतना हीन
प्राणों में प्रेरणा बणै नहीं है क्यूं ?
ओ गंगा बैवे है क्यूं

Translated In Rajsthani by : Raju Khemka, Assam

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