जन सुराज अभियान -4
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*प्रशांत किशोर - जन सुराज अभियान -4*
*यह कहानी शुरू होगी बिहार से, पर रुकेगी नहीं बिहार तक.. प्रशांत किशोर*
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जन सुर...
आपणी भासा म आप’रो सुवागत
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नवंबर
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- राजस्थानी कहावतां- 2
- आपणी भासा राजस्थानी - शम्भु चौधरी
- राजपूत रा डावड़ो - स्व॰ रावत सारस्वत
- अ.भ. मारवाड़ी युवा मंच : दशम राष्ट्रीय अधिवेशन
- मोडीया लिपि ‘महाजनी’ / Modiya Script
- राजस्थानी भासा साथै धोखो?
- धरती धौरां री... से मुलाकात - शम्भु चौधरी
- बंगला साहित्य में राजस्थान - प्रो. शिवकुमार
- व्यंग्य: लोकतंत्र’रा स्तम्भ
- तुलसी जी का ब्याह-
- भुपेन हजारिका कोणी रया
- परिचय: श्री चम्पालाल मोहता ‘अनोखा’
- राजस्थानी वर्णमाला- शम्भु चौधरी
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नवंबर
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मंगलवार, 29 नवंबर 2011
राजस्थानी कहावतां- 2
खाट पड़े ले लीजिये, पीछे देवै न खील।
आं तीन्यां रा एक गुण, बेस्या बैद उकील।
बैस्या, बैद्यराज अर्थात डाक्टर, वकील इन तीनों की एक ही समानता है कि जब आदमी को जरूरत होती है तभी उनको याद करता है। काम हो जाने के बाद वह पलटकर भी इनको नहीं देखने आता।
कहावत का तात्पर्य है -
जब आदमी को काम पड़े उसी वक्त उससे अपना लेन-देन कर लेना चाहिए। -आपणी भासा
गरबै मतना गूजरी, देख मटूकी छाछ।
नव सै हाथी झूंमता, राजा नळ रै द्वार।।
राजा नळ के दरवाजे पर 900 हाथियों का झूंड खड़ा रहता था वह भी समाप्त हो गया। पर तुम अपनी एक हांडी छाछ पर इतराता है।
कहावत का तात्पर्य है -
अपनी संपत्ति पर इतना मत घमंड करो। एक दिन सब समाप्त हो जाता है। -आपणी भासा
ग्यानी सूं ग्यानी मिलै, करै ग्यान री बात।
मूरख सूं मूरख मिलै, कै जूता कै लात।।
इस कहावत का भावार्थ बहुत सरल है। संगत जैसी वैसी करनी। -आपणी भासा
चोदू जात मजूर री, मत करजे करतार।
दांतण करै नै हर भजै, करै उंवार-उंवार।।
मजदूरी करने वाला आदमी न तो कभी ठीक से भजन-किर्तन करता है ना ही ठीक से नहाता-खाता है बस जब उससे बात करो तो बोलता है कि बहुत समय हो गया।
कहावत का तात्पर्य है -
जो अस्त-व्यस्त रहता है उसी के पास समय नहीं रहता। -आपणी भासा
जायो नांव जलम को रैणौ किस विध होय?
जन्म लेने वाले बच्चे को 'जायो' कहा जाता है तो वह अमर कैसे हुआ?
कहावत का तात्पर्य है - एक दिन सबको जाना तय है। जन्म लेने के साथ ही मौत तय निष्चित हो जाती है। -आपणी भासा
ज्यूं-ज्यूं भीजै कामळी, त्यूं-त्यूं भारी होय।
कपास, रुई या कम्बल जैसे-जैसे पानी में भींगती है वह किसी काम के लायक नहीं रह जाती।
कहावत का तात्पर्य है -
जैसे-जैसे आदमी में किसी भी बात का घमंड बढ़ने लगता है वह समाज से कट जाता है।
इस कहावत को कुछ लोग यह अर्थ भी लगाते हैं- जैसे-जैसे धन आने लगता है उस आदमी की कर्द समाज में होने लगती है। -आपणी भासा
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so nice
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जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंगणो सोखो लाग्यो सा और आपणी भाषा रो गणो मज़ो है जिको हर किने भी पले कोणी पड़े हिंदी और अंग्रेजी रे साथै अपणी भाषा रो भी ध्यान राखणो चाहिजै राम राम सा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन श्रीमान
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